
उत्तराखंड में 2022 के आम चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां परवान चढ़ने लगी हैं। रैलियों और यात्राओं के जरिए भाजपा-कांग्रेस एक दूसरे को मात देने को जोर लगाए हैं, तो आम आदमी पार्टी भी फ्री स्कीमों के लॉलीपॉप लिए खुद के लिए जगह बनाने में जुटी है। अब रही बात सीएम के चेहरे की तो इस पर भी आप और भाजपा अपने पत्ते खोल चुकी है। लिहाजा, अब कांग्रेस की बारी है कि उसकी तरफ से सीएम कैंडीडेट कौन होगा। चुनाव का रिजल्ट इसपर भी निर्भर रह सकता है।
इनदिनों भाजपा प्रदेशभर में जन आशीर्वाद रैलियों से सत्ता में वापसी का आशीर्वाद मांग रही है, तो कांग्रेस परिवर्तन यात्राओं के जरिए भाजपा को उखाड़ने को जोर लगाए है। जबकि तीसरे विकल्प के तौर पर उभर रही आम आदमी पार्टी के पास वोटर को लुभाने के लिए फ्री स्कीम का पिटारा है। जनता किसके और किन वायदों पर भरोसा करेगी यह परिणामों से साफ हो जाएगा। लेकिन वायदों से इतर जनता को आकर्षित करने के लिए सीएम का चेहरा भी अपनी अहमियत रखता है इस बात को सियासी जानकार भी मानते हैं।
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद के चार आम चुनावों में सिर्फ एकबार भाजपा घोषित तौर पर 2012 में सीएम के चेहरे के साथ चुनाव में उतरी। भाजपा ने ‘खंडूरी है जरूरी’ के नारे के साथ जनरल भुवनचंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित किया। हालांकि सत्ता वापस नहीं मिली। इसके अलावा भाजपा और कांग्रेस कभी भी घोषित तौर पर सीएम कैंडीडेट के साथ चुनाव में नहीं गई। हां तत्कालीन मौजूदा सीएम के नेतृत्व में जरूर दोनों ही दल मैदान में उतरे।
राज्य का पहला आम चुनाव भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में लड़ा। 2007 में नेतृत्व तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण तिवारी का रहा। 2012 में जरूर भाजपा सीएम बीसी खंडूरी घोषित चेहरे के साथ चुनाव में गई। 2017 के चुनाव में भी कांग्रेस सीएम हरीश रावत को आगे कर चुनाव में उतरी। लेकिन हर बार जनता ने तत्कालीन नेतृत्व को नकारा। 2017 में भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आगे रखकर चुनाव लड़ी और प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई।
इसबार उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी की इंट्री ने सियासी हालातों को कुछ अलग कर दिया है। आप ने सबसे पहले सीएम के चेहरे के तौर पर कर्नल अजय कोठियाल का नाम घोषित किया, तो भाजपा के नवनियुक्त चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी को ही अपना सीएम कैंडीडेट बता चुके हैं। जबकि कांग्रेस अभी भी पशोपेस में है।
वह भी तब जब पूर्व सीएम हरीश रावत कई बार ‘सीएम के चेहरे’ की अहमियत को बता चुके हैं। उनका मानना है कि भाजपा का मुकाबला ‘घोषित चेहरे’ के साथ ही किया जा सकता है। हालांकि इस रणनीति के पीछे उनका अपना नाम ही आगे है। कांग्रेस ने भी अघोषित तौर पर 2022 के चुनाव का नेतृत्व देकर उन्हें ही आगे रखा है। बावजूद इसके हरदा अधिकारिक तौर पर सीएम फेस चाहते हैं। लिहाजा, अब कांग्रेस हरदा की बात मानती है या अंदरूनी गुटबाजी के दबाव में आकर चुप रहती है, यह देखना बाकी है।