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सत्संगः मानव से प्रेम ही ईश्वर प्रेम हैः सुदीक्षा

Satsang : समालखा हरियाणा स्थित संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल पर आयोजित 77वें वार्षिक समागम में लाखों श्रद्धालुओं प्रतिभाग किया। निरंकारी गुरु सुदीक्षा ने अपने दिव्य संदेश में कहा कि जीवन के हर क्षण को भक्ति में बदल दिया जाए, तो अलग से पूजा का समय निकालने की आवश्यकता ही नहीं रहती।

समालखा के विशाल मैदान में आयोजित समागम में निरंकारी सतगुरु सुदीक्षा ने फरमाया कि जब हम अपने सीमित दायरे से सोचते हैं तो केवल कुछ ही लोगों से रुबरु हो पाते हैं, और जब हम परमात्मा संग जुड़ते है तब हम सही अर्थों में सभी से प्रेम करने लगते हैं। यही प्रेमाभक्ति ईश्वर प्राप्ति का सरलतम मार्ग है।

उन्होंने कहा कि जीवन के हर क्षण को भक्ति में बदल दिया जाए, तो अलग से पूजा का समय निकालने की आवश्यकता ही नहीं रहती। यही विचारधारा जब व्यापक रूप ले लेती है तो सबके प्रति निस्वार्थ सेवा और प्रेम की भावना को जाग्रत करती है। आपने संतों के संग और ध्यान (सुमिरण) को आत्मा की गहराई से जोड़ने का सरल माध्यम बताया।

उन्होंने समुद्र की गहराई और शांति को सहनशीलता और विनम्रता का सुंदर प्रतीक बताया। जिस प्रकार समुद्र अपने अंदर सब कुछ समेटे हुए होता है फिर भी शांत अवस्था में रहता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने भीतर सहिष्णुता और विशालता विकसित करनी चाहिए।

समागम का दूसरे दिन आयोजित सेवादल की रैली में देश-विदेश से आए सेवादारों ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर मिशन की शिक्षाओं व आध्यात्मिकता पर लघु नाटिकाएं मंचित की गई। वहीं शारीरिक व्यायाम, खेलों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों से निःस्वार्थ सेवा का संदेश दिया गया।

इस अवसर पर सतगुरु सुदीक्षा ने कहा कि सेवा का भाव न केवल पवित्र है अपितु यह जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और अनुशासन का सुंदर प्रतीक है। आपने समझाया कि सेवादल की वर्दी को केवल बाहरी आवरण न मानकर इसे अपने भीतर के अहंकार को मिटाने और सेवा-भाव को जागृत करने का माध्यम समझाना है। सेवादल के सदस्य अपनी ड्यूटी निभाने के साथ-साथ घर-परिवार की जिम्मेदारियों का सामंजस्य करते हुए भी सेवा को निभाते है। यही तालमेल एक आदर्श जीवन का उत्तम उदाहरण है।

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