धर्म कर्म

मानव जीवन को मर्यादित रखने पर बल देते हैं धर्मशास्त्र

उत्तराखंड संस्कृत अकादमी द्वारा जनपद देहरादून की ई संगोष्ठी आयोजित

ऋषिकेश। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की ओर से आयोजित संस्कृत मास महोत्सव के उपलक्ष में शनिवार को जनपद देहरादून की ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में जानकारों ने धर्मशास्त्र परंपरा विषय पर अपने विचार साझा किए।

जनपद देहरादून के संयोजक डॉ. जनार्दन प्रसाद कैरवान की अगुवाई में संगोष्ठी के मुख्यवक्ता डॉ. प्रकाश चमोली ने कहा कि धर्मशास्त्र मानव जीवन को मर्यादित रखने पर बल देते हैं। उत्तराखंड में अनेक धर्मशास्त्रों की स्थापना, अनुष्ठान और अनुसंधान हुआ हैं। जिसका प्रचार प्रसार किया जाना आवश्यक है।

मुख्य अतिथि मुख्य शिक्षा अधिकारी देहरादून प्रदीप कुमार ने संस्कृत भाषा के दैनिक जीवन में उपयोग पर जोर दिया। विशिष्ट अतिथि संजय शास्त्री ने कहा कि धर्म शास्त्र ही मानव का उत्थान कर सकते हैं। राधाकृष्ण अमोला ने कहा कि धर्म के दो प्रकार लौकिक और वैदिक हैं। लौकिक धर्म की धारणा से समाज अच्छी उन्नति और वैदिक धर्म से मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

संगोष्ठी अध्यक्ष सहायक निदेशक संस्कृत शिक्षा डॉ. चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने कहा कि धर्म आचरण का विषय है। धर्म शास्त्र की सुदृढ़ परम्परा में उत्तराखंड अग्रणी है। इस अवसर पर आदित्य और आशुतोष ने वेदमन्त्रों से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। केशव, नितिन, अमन ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। संचालन सह संयोजक शान्ति प्रसाद मैठाणी द्वारा किया गया।

राज्य संयोजक संस्कृत अकादमी के शोध अधिकारी डॉ. हरीश चंद्र गुरूरानी ने अकादमी के कार्यों की जानकारी दी। संगोष्ठी में विजय जुगलान, विपिन बहुगुणा, सुभाष डोभाल, जितेंद्र प्रसाद भट्ट, डॉ.नवीन पंत, डॉ. प्रकाश चंद रूवाली, शंकरमणि भट्ट, भगवती प्रसाद उनियाल, सुशील नौटियाल, हेमन्त तिवारी. सुरेश पंत आदि वर्चुअल जुड़े।

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