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अबके भी ‘सियासतदां’ पर ‘भारी’ मतदाता का ‘मौन’

• धनेश कोठारी

Uttarakhand Election 2022: हाल के दशकों में मतदान से पहले ही नहीं बल्कि परिणाम आने के बाद भी वोटर खुलकर सामने नहीं आना चाहता। इसबार भी माहौल अलग नहीं। हमेशा की तरह इस दफा भी उसका ‘मौन’ राजनीतिज्ञों पर भारी पड़ रहा है।

इसबार मतदान और परिणाम आने के बीच का लंबा समयांतराल भी उनकी बेचैनी की वजह है। वह दावे जरूर कर रहे हैं, लेकिन उनकी बातों में किंतु-परंतु और ‘हरारत’ सी साफ दिख रही है। प्रदेश की लगभग हर सीट पर यही हाल है। राजनीतिक दलों के गढ़ माने जाने वाली सीटों पर भी 2022 का चुनाव कुछ अलग रंग में लग रहा है। कई सीटों पर आमने-सामने की बजाए फाइट कांटों में उलझी है। यहां दिग्गजों की ‘साख’ दांव पर है।

यह तब है जब प्रचार के दौरान न कहीं कोविड-19 की पाबंदियों का असर दिखा, और न तामझाम में। हर दल यहां तक कि कई सीटों पर निर्दलीयों ने भी प्रचार में पैसा पानी की तरह बहाया। शराब के चाहने वालों तक शराब और साड़ी वालों को साड़ियां चोरी छुपे पहुंचाई गई। हालांकि बताते हैं कि यह सब पर्दे के पीछे ही चला।

इसबार जमीन प्रचार के कम समय मिला, तो इंटरनेट के साथ आखिरी दौर में स्टार प्रचारकों के जरिए माहौल बनाने भरपूर की हर मुमकिन कोशिशें हुई। घोषणापत्रों में फ्री स्कीमों की की भरमार रही। हमेशा की तरह विकास का भी खूब रट्टा लगाया गया।

बावजूद वोटरों की चुप्पी ने उम्मीदवारों की धड़कनों को तेज कर रखा है। वहीं इस मौन के बाद भी राजनीतिक विश्लेषक आंकलनो में तुक्केबाजी के गणित पर दावं लगा रहे हैं। उनके दावे भी ‘बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की’ वाले है। यह सब धुंधलका तो 10 मार्च को ही छंटेगा, कि मतदाता ने महापर्व के दान का पुण्य ईवीएम में किसके बटन पर जमा किया है।

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