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Rishikesh: ‘मिथक’ के आगे ‘स्थानीयता’ इसबार भी हारी

Rishikesh Assembly Election 2022: गंगोत्री और बदरीनाथ की तरह ऋषिकेश विधानसभा से भी एक ‘मिथ’ जुड़ा है। माना जाता है कि यहां पब्लिक स्थानीय के नहीं बल्कि हमेशा बाहरी उम्मीदवार के पक्ष में ही खड़ी होती है। पांचवीं विधानसभा के जनादेश ने एक बार फिर से इस मान्यता पर ही मुहर लगाई। मजेदार बात कि यहां जीत का अंतर भी हर बार बढ़ता रहा है।

उत्तराखंड राज्य के गठन से लेकर अब तक हुए पांच विधानसभा चुनावों में स्थानीय मूल के प्रत्याशी को कभी जीत नहीं मिली। 2002 के पहले चुनाव में कांग्रेस ने आखिरी वक्त में स्थानीय दावेदार की जगह पैराशूट कैंडिडेट शूरवीर सिंह सजवाण को उतारा और जीत हासिल की। तब मुख्य मुकाबले में भाजपा ने स्थानीय प्रत्याशी संदीप गुप्ता पर दांव लगाया था। मगर वह महज 841वोट से हार गए।

यही रणनीति दूसरी बार 2007 के चुनाव में भाजपा ने आजमाई और डोईवाला के मूल निवासी प्रेमचंद अग्रवाल पर दांव खेला। भाजपा की यह कोशिश कामयाब रही। अग्रवाल ने अपरिचित होने के बावजूद शूरवीर सिंह सजवाण जैसे कद्दावर नेता को 9077 मतों से परास्त किया।

तीसरे विस चुनाव 2012 में छात्र राजनीति से उभरे स्थानीय युवा राजपाल खरोला को कांग्रेस ने टिकट दिया। लेकिन तब भी स्थानीयता आम जनमानस को रिझा नहीं सकी। मैदान में भाजपा प्रत्याशी प्रेमचंद अग्रवाल उतारा तो जनता ने उन्हें दूसरी बार अपना नेतृत्व सौंपा। अग्रवाल का तब भले ही जीत का अंतर कम रहा। उन्होंने खरोला को 7271 वोटों हराया। यह सिलसिला यहीं नहीं रूका।

मिशन 2017 के रण में कांग्रेस से बतौर पैराशूट प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के मैदान में उतरने के कयास थे। लेकिन पार्टी और सीएम हरीश रावत ने राजपाल खरोला पर दूसरी बार विश्वास जताया। जबकि भाजपा से प्रेमचंद अग्रवाल को टिकट मिलने पर पार्टी में बगावत हुई। पूर्व राज्यमंत्रा संदीप गुप्ता ने विरोध में मैदान में ताल ठोका।

चुनाव प्रचार के दौरान एकबारगी लगा कि 2017 में बाहरी कैंडिडेट के जीतने का ‘मिथक’ हारेगा, मगर परिणाम इसके उलट रहे। तीसरी बार अग्रवाल की ‘हैट्रिक’ ही नहीं लगी, बल्कि जीत का अंतर भी दोगुना हुआ। प्रेम ने राजपाल को दूसरी बार 14801 मतों से हराया।

2022 के पांचवे विधानसभा चुनाव में इस मिथक के साथ ही एक और मिथक जोड़ा गया कि ऋषिकेश क्षेत्र में कोई भी किसी भी स्तर के चुनाव में चौथी बार नहीं जीता है। लेकिन पहला मिथक तो कायम रहा, पर दूसरा मिथ हार गया। प्रेमचंद अग्रवाल इसबार और भी प्रचंड अंतर से चुनाव जीते।

विधानसभा के पांचवे चुनाव में कांग्र्रेस ने नया प्रयोग किया। शूरवीर सजवाण जैसे कदावर नेता की दावेदारी को दरकिनार कर युवा जयेंद्र रमोला पर भरोसा जताया। प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने अपनी पूरी ताकत भी झोंकी। यहां तक कि इसबार पिछले मुकाबलों के बरक्स कांग्रेस मैदान में एकजुट भी दिखी। लेकिन जनता ने तब भी कांग्रेस को रिजेक्ट कर दिया। प्रेमचंद अग्रवाल को इसबार 520125 तो कांग्रेस के जयेंद्र रमोला को 33052 वोट हासिल हुए। तीसरे नंबर पर उजपा के कनक धनाई ने जरूर बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन वह भी भाजपा को रोक नहीं सके। कनक को 13045 वोट मिले।

यानि कि जन विश्वास की बात करें, तो ऋषिकेश में ‘स्थानीयता’ को जनता ने हरबार रिजेक्ट किया और मिथक पर ही अपनी मुहर लगाई। इसबात की आशंका हर चुनाव में रही और सच भी साबित हुई।

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