उत्तराखंडसियासत

अपने ही ‘घर’ में क्या वाकई ‘डर’ रहे हैं ‘सुबोध’?

• धनेश कोठारी

Narendranagar Assembly: विधानसभा चुनाव से पहले टिकटों को लेकर राजनीतिक दलों में कई दावेदारों को जहां संघर्ष करना पड़ रहा है, वहीं कई जमीनी समीकरणों को भांप कर सीटों को बदलने की फिराक में हैं। इनमें सबसे पहला नाम है हरक सिंह रावत (Harak Singh Rawat) का, जो कई बार ऐसा कर चुके हैं। मगर, इसबार सीट बदलने को लेकर सुबोध उनियाल (Subodh Uniyal) का नाम भी सुर्खियों में है। ऐसे में सीधा सवाल यही उठ रहा है कि क्या उन्हें अपनी ‘परंपरागत सीट’ पर भी वाकई ‘डर’ लग रहा है?

एक दिन पहले ही सुबोध उनियाल अचानक मीडिया की सुर्खियों में महज इसलिए आ गए कि उन्होंने भाजपा (BJP) के उत्तराखंड चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी (Prahlad Joshi) से बंद कमरे में लंबी गुफ्तगू की। जो कि सीट बदलने को लेकर बताई गई। हालांकि सुबोध उनियाल ने इस बात को सिरे से खारिज किया है। बावजूद इसके सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स फिलहाल मीटिंग की असल वजह सीट परिवर्तन पर ही फोकस हैं।

बता दें, कि नरेंद्रनगर विधानसभा क्षेत्र सुबोध उनियाल की राजनीति का कर्मक्षेत्र रहा है। यहां तक कि सियासत में इस सीट को उनका गढ़ माना जाता है। मगर, चुनाव दर चुनाव जिस तरह से सियासी हालात बदले, परंपरागत सीट और एक फिक्स वोट बैंक के बावजूद सुबोध का संघर्ष बढ़ता चला गया। जो कि आज कम होने की बजाए औ बढ़ा हुआ बताया जा रहा है।

उत्तराखंड राज्य के पहले विस चुनाव में उन्होंने भाजपा के लाखीराम जोशी से यह सीट 1531 वोटों से झटकी थी। तो दूसरे चुनाव 2007 में ओमगोपाल रावत (Om Gopal Rawat) का कद बढ़ा, और उन्होंने सुबोध को कांटे के संघर्ष में सिर्फ 4 वोट से पीछे किया। 2012 के आम चुनाव में सुबोध जीते तो, लेकिन बीजेपी के सिंबल पर ओमगोपाल ने उन्हें जबरदस्त टक्कर दी। तब सुबोध महज 401 वोटों की बढ़त ही ले सके। 2017 में वह भाजपा के टिकट से मैदान में उतरे, तब उनकी जीत का अंतर बढ़कर भले ही 4972 रहा। लेकिन इसे भी ‘मोदी लहर’ का परिणाम माना गया। यानि कि इस सीट पर उनकी पकड़ ढीली होती बताई गई।

इसबार सुबोध उनियाल और ओमगोपाल रावत दोनों ही चिर प्रतिद्वंदी भाजपा में हैं। मगर भाजपा में ओमगोपाल की बजाए उन्हें खासा महत्व मिला। उन्हें मंत्री पद के अलावा शासकीय प्रवक्ता का बड़ा ओहदा भी दिया गया। यहां तक कि नरेंद्रनगर विधानसभा क्षेत्र के लिए उनके ही मुताबिक बजट भी मिलता रहा। जो कि धरातल पर नजर भी आता है। वहीं, हाल की एक जनसभा में खुद उन्होंने जनता से ‘विकासवादी’ नेता को चुनने की अपील की।

बावजूद इसके अगर सुबोध उनियाल इस सीट को लेकर वाकई संशय में हैं, तो निश्चित ही यह बड़ा ‘सियासी खतरा’ माना जाना चाहिए। सो, सुबोध कैसे इन सियासी चुनौतियों से पार पाएंगे, इसका इंतजार लाजिमी है। हालांकि तमाम राजनीतिक घटनाक्रमों और जमीन हालातों के बाद भी सियासत के जानकारों का अभी भी यही मानना है, कि नरेंद्रनगर सीट पर 2022 में भाजपा के खेवनहार सुबोध उनियाल ही होंगे।

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