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Uttarakhand: कांटे की टक्कर, ‘त्रिशंकू’ का इशारा तो नहीं !

• धनेश कोठारी

उत्तराखंड में अगली सरकार किसकी बनेगी, इसका अनुमान हालिया सर्वे लगा रहे हैं। जिनमें कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी नेक टू नेक फाइट बताई जा रही है। मगर, इन्हीं सर्वे में सीएम और सीटों के बीच के विरोधाभास का संकेत समझें, तो 2022 ‘त्रिशंकू’ जैसा परिणाम भी सामने ला सकता है। हालांकि पब्लिक के मूड को गढ़ने के लिए अभी राजनीतिक दलों के पास अभी तीन महीने शेष हैं।

हाल के दिनों में एबीपी सी-वोटर का 2022 में पांच राज्यों के चुनाव को लेकर ताजा सर्वे सामने आया है। उत्तराखंड में किए गए सर्वे के अनुसार भाजपा इसबार 2017 प्रचंड हालात में नहीं दिख रही है। नवंबर के सर्वे के मुताबिक भाजपा को 36 से 40 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है। जो कि सिंतबर और अक्टूबर की स्थिति से भी कम हैं। सितंबर में बीजेपी को 44 से 48 तो अक्टूबर में 42 से 46 सीट का अनुमान था।

इसी सर्वे में कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार सुधरा दिखा है। सितंबर में उसे 19 से 23 और अक्टूबर में 21 से 25 सीटें मात्र मिलने का अनुमान था, जो कि नवंबर आते-आते 30 से 34 तक पहुंच गया। यानि कि 36 के जादुई आंकड़े से महज दो सीट दूर। 2017 के बरक्स इस अनुमान को कांग्रेस के लिए बेहतर ही कहा जाएगा।

आम आदमी पार्टी जो पहली बार उत्तराखंड के चुनावी संग्राम में आ रही है। उसका सिंतबर और अक्टूबर का ग्राफ 4 से 2 सीट पर सिमटा बताया गया है। अन्य के खाता भी 1-2 सीट से आगे बढ़ता नहीं लग रहा है।

सर्वे के मुताबिक वोट शेयर का प्रोजेक्शन देखें, तो यहां भी भाजपा 2017 के मुकाबले 46.5 से खिसक कर 41.4 प्रतिशत पर बताई गई है। जबकि कांग्रेस 33.5 से आगे निकलकर 36.3 प्रतिशत पर पहुंच रही है। 2.8 प्रतिशत का यह स्विंग सीटों के लिहाज से कांग्रेस के लिए मुफीद साबित हो सकता है। अंतिम परिणामों पर आम आदमी पार्टी और अन्य का वोट शेयर भी निश्चित ही असर डालेगा। सर्वे में आप को 11.8 तो अन्य को 10.5 प्रतिशत दर्शाया गया है। इनके प्रदर्शन में आधा से एक प्रतिशत का उतार चढ़ाव भी बहुमत के आंकड़े को भाजपा और कांग्रेस से छिटका सकता है।

यह इसलिए भी कि इसी सर्वे में मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे अधिक 31 प्रतिशत हरीश रावत को पसंद किया गया है। जबकि पुष्कर सिंह धामी 28 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर हैं। यह विरोधाभास भी 2022 के परिणामों को ‘त्रिशंकू’ जैसे मानने के संकेत दे रहा है। लिहाजा, सर्दियों के इनदिनों में राजनीतिक गर्माहट के और बढ़ने के पूरे आसार हैं।

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