
गोपेश्वर (शिखर हिमालय)। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की ओर से जनपद चमोली में महाकवि कालिदास की जयंती पर ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने महाकवि के मानवीय जीवन से लेकर उनके साहित्यिक कृतित्व पर प्रकाश डाला। सगोष्ठी में संस्कृत भाषा के अधिक से अधिक उपयोग पर भी जोर दिया गया।
ऑनलाइन संगोष्ठी में का शुभारंभ डॉ. प्रवीण शर्मा ने मंगलाचरण से किया। कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. विश्वबंधु ने कहा कि महाकवि कालिदास की कृतियाँ देश के श्रेष्ठ साहित्य की परिचायक हैं। वह संस्कृत ही नहीं वर्न अन्य भाषा साहित्यों में भी सम्मानित हैं। मुख्य अतिथि डॉ. जनार्दन कैरवान ने महाकवि मानवीय जीवन पर प्रकाश डाला। कहा कि तात्कालिक परिस्थितियों में भी मानव जीवन सम और उदार था।
विशिष्ट अतिथि डॉ. जितेंद्र ने कहा कि कालिदास प्रकृति के कवि थे। उनके पात्रों में भी प्रकृति और प्रेम साफ दृष्टिगोचर है। विशिष्ट अतिथि डॉ. चंद्रावती टम्टा ने कहा कि तब वन्य मानवीय जीवन नगरीय जीवन से पृथक नहीं था। उनमें त्याग, दया, आतिथ्य सत्कार की भावनाएं समाहित थी।
मुख्य वक्ता डॉ. जोरावर सिंह ने कहा कि कालिदास ने प्रकृति की बेजान वस्तुओं में भी प्राण डाला। मेघदूत में मेघ द्वारा यक्ष अपनी विरह व्यथा को यक्षिणी तक प्रेषित करवाते हैं। डॉ. संदीप कुमार ने महाकवि की उपमाओं की तुलना अंग्रेजी साहित्य के प्रमुख नाटककार शेक्सपियर से की। कहा कि कालिदास के नाटक मानवजीवन की विशेषताओं को उजागर करते हैं।
इसबीच कार्यक्रम संयोजक डॉ. मृगांक मलासी ने छात्रों को संस्कृत बोलने के लिए प्रेरित किया। कहा कि प्रारम्भ में यदि अशुद्ध भी बोलें तो चिन्ता न करें, संस्कृत का अभ्यास करते रहें।
सह संयोजक हरीश बहुगुणा ने विद्वानों का धन्यवाद जताया। कार्यक्रम में डॉ. हरीश चन्द्र गुरुरानी, डॉ. रमेश चन्द्र भट्ट, डॉ. नीरज पाँगती, डॉ. हरीश बहुगुणा, आदि शामिल रहे।