उत्तराखंड

कोटद्वार की सड़कों पर भी गूंजी मूल निवास और भू-काननू की आवाज

कोटद्वार। मूल निवास और भू-कानून की मांग को लेकर आायोजित स्वाभिमान रैली में जबरदस्त भीड़ उमउ़ी। रैली में कई सामाजिक संगठनों समेत राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओं भी बड़ी संख्या में जुटे। आंदोलनकारियों ने सरकार से एक बार फिर राज्य में मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 करने और सशक्त भूकानून के साथ 11 सूत्री मांगों को दोहराया।

रविवार को मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के आह्वान पर कोटद्वार के देवी मंदिर से मालवीय पार्क तक रैली निकाली गई। जो कि देवीमंदिर के पास सभा में तब्दील हुई। कहा कि पहाड़ के प्रवेश द्वार कोटद्वार से महारैली का संदेश पहाड़ के गांव-गांव तक पहुंचेगा। कहा कि कोटद्वार, दुगड्डा, फतेहपुर, लैंसडौन, चमेठा, ताड़केश्वर, रिखणीखाल आदि क्षेत्रों में जमीनें बिक चुकी हैं। कई जगह रिसॉर्ट कल्चर शुरू हो गया, जो कि हमारी संस्कृति से मेल नहीं खाता है। आने वाले समय में हमारी सांस्कृतिक पहचान समाप्त होने पर मूल निवासियों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा।

उन्होंने कहा कि हमारी लड़ाई अपनी जमीनों के साथ मूल निवासियों के अधिकारों को बचाने की भी है। हम चाहते हैं कि राज्य की नौकरियों और रोजगार में पहला हक मूल निवासियों का होना चाहिए। हक की यह लड़ाई हम आखिरी सांस तक लड़ते रहेंगे। आज हम सचेत नहीं हुए तो हमारे वजूद को खतरा बढ़ जाएगा।

उन्होंने कहा कि जिस तरह प्रदेश के मूल निवासियों के हकहकूकों को खत्म किया जा रहा है, उससे एक दिन प्रदेश के मूल निवासियों के सामने पहचान का संकट खड़ा हो जाएगा। इसलिए मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 करने और प्रदेश में मजबूत भू-कानून बेहद जरूरी है। संचालन संघर्ष समिति के कोर मेंबर प्रांजल नौडियाल ने किया।

यह रहे आंदोलन में शामिल
संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी, सह संयोजक लुशुन टोडरिया, कोर मेंबर प्रमोद काला, पूर्व सैनिक संगठन अध्यक्ष महेंद्र पाल रावत, पूर्व पार्षद परवेंद्र रावत, रमेश भंडारी, क्रांति कुकरेती, यूकेडी संरक्षक शक्तिशैल कपरवाण्सा, राज्य आंदोलनकारी महेंद्र रावत, शिवानंद लखेड़ा, गोविंद डंडरियाल, गजेंद्र तिवारी, महेंद्र सिंह पंवार, बेरोजगार संघ उपाध्यक्ष राम कंडवाल, पहाड़ी आर्मी के अध्यक्ष हरीश रावत, स्वराज हिन्द से सुशील भट्ट, वंदे मातरम ग्रुप हल्द्वानी के शैलेंद्र दानू, कॉंग्रेस जिला अध्यक्ष विनोद डबराल, दुगड्डा ब्लॉक प्रमुख रुचि कैंतुरा, पूर्व ब्लॉक प्रमुख नैनीडांडा रश्मि पटवाल, पूर्व ब्लॉक प्रमुख पोखडा सुरेंद्र सिंह रावत, वाचस्पति भट्ट सलाण, हरेंद्र सिंह रोथाण, यूकेडी के केंद्रीय महामंत्री कर्नल (रि) सुनील कोटनाला, दीप्ति दुदपुड़ी, योगेश बिष्ट, कैप्टन चंद्रमोहन सिंह गड़िया, सूबेदार मेजर महिपाल सिंह, दीपक भाकुनी, पौड़ी बचाओ समिति के संयोजक नमन चंदोला, कुसुम बौड़ाई राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के शिवप्रसाद सेमवाल, कांग्रेस से बलबीर सिंह रावत, प्रवेश रावत, रंजना रावत, यूकेडी प्रवक्ता मीनाक्षी घिल्डियाल, हिंदू समाज पार्टी से दीपक रावत जयदेव भूमि फाउंडेशन से शिवानंद लखेड़ा, महिला पतंजलि से शोभा रावत, अनिल डोभाल, पंकज उनियाल, अल्मोड़ा से राकेश बिष्ट, चौखुटिया से भुवन कठैत, छात्र अंकुश घिल्डियाल, पुष्पा चौहान, किरण बौड़ाई, बार एसोसिएशन से अजय पंत आदि।

ये हैं प्रमुख मांगें
– मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू की जाए।
– प्रदेश में ठोस भू-कानून लागू हो।
– शहरी क्षेत्र में 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो। 250 वर्ग मीटर जमीन उसी को दी जाय, जो 25 साल से उत्तराखंड में सेवाएं दे रहा हो या रह रहा हो।
– ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
– गैर कृषक द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
– पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
– राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
– प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
-ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।
– सरकार राज्य में संविधान के मौलिक अधिकारों की धारा 16-ए के अनुसार राज्य विधानसभा में एक संकल्प पारित करे, जिसमें तृतीय और चतुर्थ श्रेणी सहित उन सभी पदों पर स्थानीय युवाओं के लिए पद आरक्षित करे। इस तरह की व्यवस्था देश के चार राज्यों आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, हिमाचल और मणिपुर में है। यह अधिकार हमें संसद देती है। इसके लिए राज्य सरकार तुरंत एक संकल्प पत्र केन्द्र सरकार को भेजे।
– राज्य में उन सभी पदों में स्थानीय भाषाओं की अनिवार्यता लागू की जाए जो सीधे जनता से जुड़े हैं।

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