
Rishikesh Assembly Election 2022: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) में आज से प्रचार भी जोर पकड़ लेगा। सियासी दलों के मैनेफेस्टो लॉन्च होंगे, तो प्रत्याशी भी लोकल स्तर पर अपना-अपना घोषणापत्र तैयार कर जनता के बीच रखेंगे। जनता को किसका घोषणा पत्र और किसके वायदों पर विश्वास होता है, 10 मार्च को इसका खुलासा हो जाएगा। मगर इससे पहले इस बात की चर्चा शुरू हो गई है, कि जिन सीटों पर ‘एंटी इनकंबेंसी’ की आशंका है वहां प्रतिपक्ष का कौन सा उम्मीदवार इस माहौल को अपने पक्ष में साध पाएगा..?
ऋषिकेश विधानसभा में राज्य के चार चुनावों में एक बार कांग्रेस तो तीन बार भाजपा को जनता का माइंडेट मिला। 2007 में कांग्रेस की नाकामी का बड़ा कारण सत्तारोधी रुझान से अधिक ‘अंतर्कलह’ रही। जबकि उसके बाद के चुनावों 2012 और 2017 में भीतरी गुटबाजी के बावजूद पार्टी ‘राजनीति लहर’ ने भाजपा को जीत देने के साथ उसका वोट प्रतिशत भी बढ़ाया। जिसके चलते सियासी हलकों में ऋषिकेश असेंबली को ‘बीजेपी का गढ़’ बताया जाता है। नतीजा, भाजपा ने चौथी बार प्रेमचंद अग्रवाल को ही विनिंग कैंडिडेट मानकर टिकट दिया है।
वहीं, कांग्रेस ने युवा जयेंद्र रमोला पर भरोसा करने के साथ अपनों की नाराजगी को भी दुरुस्त कर लिया, तो उत्तराखंड की सियातस में पहली बार दस्तक देने पहुंची आम आदमी पार्टी ने डॉ. राजे सिंह नेगी पर दांव खेला है। इसके अलावा उत्तराखंड जनएकता पार्टी भी पहली बार ऋषिकेश सीट पर मैदान में है, उसने यहां से कनक धनाई को प्रत्याशी बनाया है। जबकि उत्तराखंड क्रांति दल ने साहबनगर के पूर्व प्रधान मोहन सिंह असवाल पर भरोसा किया है। बता दें, कि बीजेपी की एक बागी उम्मीदवार उत्तराखड राज्य आंदोलनकारी परिषद की पूर्व अध्यक्ष उषा रावत भी मैदान में हैं।
सियासी जानकारों के अनुसार ऋषिकेश सीट पर 2022 का चुनाव इन्हीं प्रत्याशियों के ईदगिर्द रहने की उम्मीद है। हालांकि ताजा रुझानों के मुताबिक अभी तक मुख्य मुकाबले में बीजेपी, कांग्रेस, आप और उजएपा ही बताई जा रही हैं। ऐसे में कौन किस पर भारी पड़ेगा, इससे अलग और बड़ा सवाल ये भी कि ‘एंटी इनकंबेंसी’ फैक्टर का किसी को फायदा होगा? या फिर ‘एंटी इनकंबेंसी’ की खबरों को भाजपा अपने दावों के बूते बेअसर कर देगी?
जानकार यह भी कहते हैं कि ऋषिकेश में मौजू चुनाव में ”15 साल बनाम बदलाव“ की लड़ाई भी लड़ी जा रही है। जो कि बेहद रोचक हो सकता है। यानि सिटिंग एमएलए के सामने खुद को ‘अजेय’ रखने, तो प्रतिपक्ष के सामने ‘बदलाव’ लाने की चुनौती है। लिहाजा, जनता ‘यथास्थिति’ और ‘परिवर्तन’ किस पर मुहर लगाती है, यह 10 मार्च का दिन सामने आ जाएगा।