उत्तराखंडसियासत

‘काऊ’ और ‘हरक’ प्रकरण ‘बगावत’ की भूमिका तो नहीं?

जानकारों को उत्तराखंड की सियासत में 2016 के लौटने की आशंका

• धनेश कोठारी

रायपुर विधायक उमेश शर्मा काऊ प्रकरण और कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का हालिया बयान भाजपा में क्या किसी ‘बगावत’ की भूमिका हो सकते हैं? सियासी हलकों में इस बात के कयास लगने लगे हैं। भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व पर निर्भर है कि वह हालातों को कैसे हैंडल करेगा।

रायपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत की मौजूदगी में विधायक उमेश शर्मा और एक भाजपा नेता के बीच तीखी तकरार हो गई थी। यह वीडियो खूब वायरल हुआ। मामला पार्टी तक पहुंचा तो प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार को मामले की जांच का जिम्मा भी सौंप दिया गया। जिसका निर्णय आना बाकी है।

उधर, उमेश शर्मा काऊ जांच का इंतजार करने से पहले अपना दर्द दिल्ली तक पहुंचा आए। उनका कहना है कि प्रदेश नेतृत्व को कई बार बताया लेकिन कोई नहीं सुनता। दिल्ली जाना पड़ा। मगर, उन्हें विश्वास है कि मामले को परिवार में ही सुलझा लिया जाएगा। फिर भी यदि कोई निर्णय नहीं हुआ, तो हम पार्टी से बाहर अपने संगठन में निर्णय ले सकते हैं। जिसके बाद उत्तराखंड की सियासत लगभग 360 डिग्री पर घूमती लग रही है।

काऊ प्रकरण अभी गर्माया ही हुआ था कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का भी आग में घी डालने वाला एक बयान आ गया। रावत का कहना है कि भाजपा के भीतर बागियों पर पार्टी छोड़ने का प्रेशर बनाया जा रहा है। वह नहीं चाहते की हम भाजपा में रहें। वहीं, मीडिया रिपोर्ट्स को मानें तो हरक सिंह के अलावा सुबोध उनियाल भी काऊ के बचाव में आए हैं।

बताया जा रहा कि हरक सिंह रावत ने भी काऊ प्रकरण राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम तक पहुंचा चुके हैं। जिसके बाद से उत्तराखंड की सियासत गर्माई हुइ्र है। इसके परिणाम क्या होंगे, कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन जानकार ऐसे वाकयों को भाजपा के भीतर सब कुछ ठीक नहीं होने का संकेत मान रहे हैं।

वर्ष 2016 में बगावत कर पार्टी कांग्रेस के कदावर नेता हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल, यशपाल आर्य, रेखा आर्य आदि भाजपा के साथ चले गए थे। सतपाल महराज ने इससे पहले ही भाजपा ज्वाइन कर ली थी। जिसके चलते 2017 में कांग्रेस जमीदोज हो गई थी। उसे केवल 11 विधायकों पर सिमटना पड़ा था। यहां तक कि सीटिंग सीएम हरीश रावत भी अपने दोनों सीटें गंवा चुके थे।

बता दें कि कांग्रेस के बागी नेता आज भी अपने-अपने क्षेत्रों में जिताऊ और ब्रांड हैं। यहीं बात शायद भाजपा के भीतर दूसरी पंक्ति के नेताओं को रास नहीं आ रही है। उन्हें अपनी राजनीति दांव पर दिख रही है। हाल के प्रकरण इसी का नतीजा भी हो सकते हैं। ऐसे में तय है कि उत्तराखंड की सियासत में आने वाला वक्त 2016 का रूख भी ले सकता है। गर भाजपा आलाकमान ने उन्हें मैनेज नहीं किया तो।

उधर, कांग्रेस भी लगातार इसी फिराक में है कि भाजपा का छींका टूटे और मलाई पर कांग्रेस हाथ साफ कर ले। होगा क्या- तो आगे आगे देखिए होता है क्या…..।

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