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देवप्रयागः जो सालों से रहे नदारद, चुनाव मैदान में फिर वही

• सूर्यप्रकाश टोडरिया (स्वतंत्र पत्रकार)

Devaprayag Assembly Election 2022: उत्तराखंड राज्य बनने से लेकर आज तक देवप्रयाग (टिहरी) विधानसभा से जितने भी प्रतिनिधि चुने गए, वो आज तक यहां के लिए खरे नहीं उतरे। यही कारण है कि आज राज्य बनने के 21 साल बाद भी ये क्षेत्र उपेक्षा का शिकार है। अब फिर से वर्तमान और पूर्व विधायकों-मंत्रियों के साथ नए-पुराने चेहरे भी जनता के सामने है। जनता किसे चुनेगी किसे नहीं, कहना मुश्किल है। मगर इसबार लोग कुछ अलग हटकर और नई तलाश में हैं।

वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने से लेकर आज तक यहां से जीते विधायक कैबिनेट मंत्री तक बने। लेकिन इन लोगो का मकसद चुनाव जीतने के बाद सत्ता की लोलुपता तक ही था। देवप्रयाग विधानसभा तो सिर्फ नाम की रह गई है। क्योंकि यहां के नाम से ब्लाक मुख्यालय हिंडोलाखाल, आईटीआई मुनिकीरेती में चल रहा है। यहां सिर्फ तहसील है और वह भी बिना एसडीएम वाली। जनता को फिर भी अपने ज़रूरी कागजों को तैयार करवाने कीर्तिनगर के ही धक्के खाने पड़ते है।

पूर्व विधायक व कैबिनेट मंत्री मंत्रीप्रसाद नैथानी ने राष्ट्रीय कैडेट कोर की स्थापना हालांकि हिंडोलाखाल में ही कराई। यह कुम्भ क्षेत्र व राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की इस घोषणा को अपना बताकर अपने द्वारा किए गए विकास में गिनवा रहे है। ज़बकि इनका ध्यान पिछली सरकार में 05 वर्षों तक ग्रामीण व अन्य क्षेत्र में ही रहा। इसे इस क्षेत्र की बदकिस्मती समझो या फिर जप्रतिनिधियों का सौतेला ब्यवहार। पूर्व में जब मंत्री प्रसाद को कांग्रेस का टिकट नहीं मिला, तो वो निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे। जनता ने उनपर विश्वास भी जताया और वो जीत भी गए। कैबिनेट मंत्री भी बन गए। आज सत्ता का लालच में फिर वही मंत्री प्रसाद कांग्रेस के टिकट पर जनता के सामने है।

जहां तक भाजपा का सवाल है तो इनके विधायक विनोद कंडारी बीते 05 सालों में जनता के सामने आने के बजाए सिर्फ अपने ही चंद छुटभैयों के साथ अपनी डफली अपना राग अलापते रहे। जिसके चलते आज इस विधानसभा की जनता भाजपा से काफी नाराज दिखाई दे रही है। इतना जरूर है कि इन नेताओं ने अपने नजदीकी लोगों को संस्कृत विश्वविद्यालय, पेयजल संस्थान, जल निगम, आंगनबाड़ी या फिर कहीं ना कहीं फिट जरूर कराया।

सबसे बड़ी बात कि इस विधानसभा में आम युवाओं को रोज़गार देने या विकास करने के बजाए इन्हांने शराब की फैक्ट्री और देवप्रयाग के पास में ही शराब का ठेका जरूर स्थापित कराया। जिन्हें इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि कह सकते हैं। देवप्रयाग से ही गंगा को गंगा के नाम से उच्चारित किया जाता है। यहीं बदरीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों का स्थायी निवास भी है। ऐसी स्तिथि में इस पवित्र आध्यात्मिक व धार्मिक नगरी के पास मदिरा की दुकान सवाल पैदा करती है। लेकिन सरकार ने फिर भी अपने राजस्व को देखते हुए ये खुलवा ही दी।

उत्तराखंड क्रांति दल के दिवाकर भट्ट की बात करें तो जनता इनको पिछले चुनावों में देख चुकी है। इन्होंने भी दल बदले, पर सत्ता में रहते हुए देवप्रयाग के हालात नहीं बदले। आज वह फिर से चुनाव के मैदान में हैं। फिर जनता इनपर विश्वास करे भी तो कैसे? यही वजह है अब क्षेत्रीय जनमानस में नए विकल्पों और नए चेहरों के बारे में भी सोचा जा रहा है।

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