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दरमानी लाल के हस्तशिल्प का है हर कोई मुरीद

42 वर्षों से चमोली के रिंगाल हस्तशिल्प की बने हैं पहचान

• संजय चौहान

उम्र के जिस पड़ाव पर अमूमन लोग घरों की चाहरदीवारी तक सीमित होकर रह जाते हैं, वहीं सीमांत जनपद चमोली की बंड पट्टी के किरुली गांव निवासी 65 वर्षीय दरमानी लाल इस उम्र में हस्तशिल्प कला को नई पहचान दिलाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। वे पिछले 42 सालों से रिंगाल के उत्पादों को आकार दे रहें हैं। रिंगाल के बने कलमदान, लैंप सेड, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोकरी, टोपी, स्ट्रै उनके बनाए खास उत्पादों में शुमार हैं। हर कोई उनके उत्पादों का मुरीद है। यही नहीं वह अब तक बतौर मास्टर ट्रेनर कई जगह लोगों को रिंगाल हस्तशिल्प की ट्रेनिंग दे चुके हैं।

उत्तराखंड में वर्तमान में करीब 50 हजार से अधिक हस्तशिल्पी हैं, जो अपने हुनर से इस कला को संजोकर रखे हुए हैं। ये हस्तशिल्पी रिंगाल, बांस, नेटल फाइबर, ऐपण, काष्ठ शिल्प और लकड़ी पर बेहतरीन कलाकरी के जरिए उत्पाद तैयार करते आ रहे हैं। युवा पीढ़ी अपनी पुश्तैनी व्यवसाय को आजीविका का साधन बनाने में दिलचस्पी कम ले रही है। परिणामस्वरूप आज हस्तशिल्प कला दम तोडती और हांफती नजर आ रही है।

चमोली के हस्तशिल्प को ओडीटीपी से मिलेगी राह
उत्तराखंड में एक जनपद दो उत्पाद (ओडीटीपी) योजना लागू हो गई है। इसके तहत बाजार में मांग के अनुरूप कौशल विकास, डिजाइन विकास व कच्चे माल के जरिए नई तकनीक के आधार पर प्रदेश और जिले में दो उत्पादों का विकास किया जाएगा।

उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में वहां के स्थानीय उत्पादों की पहचान के अनुरूप उनका विकास करना है। इससे स्थानीय काश्तकारों एवं शिल्पकारों के लिए जहां एक ओर स्वरोजगार के अवसर पैदा होंगे वहीं दूसरी ओर हर जिले के स्थानीय उत्पादों की विश्वस्तरीय पहचान बन सकेगी। चमोली जनपद के कुलिंग, छिमटा, पज्याणा, पिंडवाली, डांडा, मज्याणी, बूंगा, सुतोल, कनोल, मसोली, टंगणी, बेमरू, किरूली गांव हस्तशिल्पियों की खान है। इन गांवों के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन हस्तशिल्प है।

किरुली गांव के 65 वर्षीय दरमानी लाल विगत 42 सालों से रिंगाल का कार्य करते आ रहें हैं। वहीं अपने पिताजी दरमानी लाल के साथ रिंगाल के उत्पादों को तैयार कर रहे राजेन्द्र कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रिंगाल के उत्पादों की भारी मांग है। हस्तशिल्प रोजगार का बड़ा साधन साबित हो सकता है। हस्तशिल्प उद्योग और हस्तशिल्पियों को प्रोत्साहन मिले, तो पहाड़ की तस्वीर बदल सकती है।

वह कहते हैं कि बाजार की मांग के अनुरूप हमें नए लुक और डिजाइन पर फोकस करना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में एक जनपद, दो उत्पाद’ योजना के अंतर्गत चमोली की हस्तशिल्प कला को नई पहचान और नई राह मिल सकेगी।

ओडीटीपी में जिलों के चयनित उत्पाद
1- चमोली में हथकरघा एवं हस्तशिल्प और एरोमेटिक हर्बल उत्पाद
2- नैनीताल में एप्पण व कैंडल क्राफ्ट
3- टिहरी में नेचुरल फाइबर प्रोडक्ट व टिहरी नथ
4- पिथौरागढ़ में ऊनी कारपेट व मुनस्यारी राजमा
5- पौड़ी में हर्बल उत्पाद व लकड़ी के फर्नीचर
6- रुद्रप्रयाग में मंदिर अनुकृति शिल्प व प्रसाद उत्पाद
7- अल्मोड़ा में ट्वीड एवं बाल मिठाई
8- बागेश्वर में ताम्र शिल्प और मंडुवा बिस्किट
9- चंपावत में लौह शिल्प व हाथ से बुने उत्पाद
10- देहरादून में बेकरी उत्पाद व मशरूम
11- हरिद्वार में गुड़ व शहद
12- ऊधमसिंहनगर में मेंथा आयल और मूंज ग्रास उत्पाद
13- उत्तरकाशी में ऊनी हस्तशिल्प और सेब से संबंधित उत्पाद।


लेखक संजय चौहान स्वतंत्र पत्रकार हैं

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