
देहरादून। भाजपा अपनी ही जिस घोषणा को 10 वर्षों में पूरा नहीं कर सकी, कांग्रेस ने उसे बोतल से फिर बाहर निकाल दिया है। पूर्व सीएम हरीश रावत ने वादा किया कि कांग्रेस सरकार में आई तो दो साल के भीतर नए जिलों को अस्तित्व में ले आएगी। बताया कि कांग्रेस ने 2016 में नए जिलों के गठन को 100 करोड़ रुपयों की व्यवस्था भी की थी।
बता दें कि वर्ष 2011 में 15 अगस्त के दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने उत्तराखंड में चार नए जिले बनाने की घोषणा की थी। जिसमें जनपद पौड़ी में कोटद्वार, उत्तरकाशी में यमुनोत्री, पिथौरागढ़ में डीडीहाट और अल्मोड़ा में रानीखेत के नाम शामिल थे। हालांकि उसके बाद 2012 में भाजपा सत्ता में नहीं लौटी। लेकिन 2017 में सत्तासीन होने के बाद भी इस दिशा में विचार तक नहीं किया गया। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत कभी भी नए जिलों के पक्ष में नहीं रहे, तो मौजूदा सीएम ने भी आज तक इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
चुनावी मौसम के चलते अब कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व सीएम हरीश रावत ने नए जिलों के गठन को लेकर इंटरनेट पर एक पोस्ट कर वादा किया है। वह लिखते हैं कि हमारे कुछ सीमांत क्षेत्र जैसे डीडीहाट, रानीखेत, पुरोला के लोग बहुत व्यग्र हैं कि उनके जिले कब बनेंगे, इतनी ही व्यग्रता कोटद्वार, नरेंद्रनगर, काशीपुर, गैरसैंण, बीरोंखाल, खटीमा के लोगों में भी है। ये कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनको जिले का स्वरूप देना आवश्यक है। मैंने सौ करोड़ की व्यवस्था इन जिलों को बनाने के लिए 2016 के बजट में की थी। कतिपय राजनैतिक दबावों के कारण ये जनपद अस्तित्व में नहीं आ पाए।
आगे लिखा कि मैं इस सरकार को राय तो नहीं देना चाहूंगा, मगर इतना जरूर कहना चाहूंगा यदि आप नहीं करोगे तो अब हम शासन के अंतिम वर्ष के लिए इंतजार नहीं करेंगे। क्योंकि अंतिम वर्ष में किसी जिले को खोलना राजनैतिक बेमानी भी है। क्योंकि आपको कुछ बजट का प्राविधान करना नहीं होता है। आप आने वाली सरकार के लिए वह काम सौंप देते हैं तो कांग्रेस इस काम को सत्ता में आने के 2 वर्ष के अंदर पूरा कर देगी। ताकि एकबार प्रशासनिक व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चल सकें।
जब हम छोटे राज्य की बात करते हैं तो प्रशासनिक इकाइयां भी छोटी करनी पड़ती हैं, इसलिये हमने 37 से ज्यादा तहसीलें और उप तहसीलें बनाई, नगरपालिकाएं बनाई, यह विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया राज्य के लिए आवश्यक है। मैं कांग्रेस के अपने साथियों से कहूंगा कि अपने घोषणापत्र में इस बिंदु पर जरूर विचार-विमर्श करें। किस तरीके से हम लोगों की इस विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था की आकांक्षा को पूरा कर सकते हैं और नए जिलों को अस्तित्व में ला सकते हैं।
अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में भाजपा का इसपर क्या रूख रहेगा। मगर, हरदा ने जिलों के जिन्न को बाहर निकालकर आम लोगों की वर्षों पुरानी मांग के प्रति भावनाओं को चुनावी मौसम में जरूर हवा दे दी है। जिसका नतीजा, चुनाव में भी देखने को मिल सकता है।