Uttarakhand CM Selection: हर किसी का चहेता बनने की परंपरा पुरानी है। राजनीति में तो इसका सबसे ज्यादा चलन है। उत्तराखंड भाजपा में भी आजकल ऐसा ही चल रहा है। कुछ विधायकों ने शायद ऐसा ही सोचकर कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए अपनी सीट तक छोड़ने की घोषणा की। जिसके बाद से वह सुर्खियों में हैं। उन्हें उम्मीद रही होगी कि आलाकमान से भी शाबासी मिलेगी। लेकिन बताया जा रहा हे कि हुआ इसका उलटा है।
उत्तराखंड में मिथकों को तोड़कर भाजपा 47 सीटों के अच्छे खासे बहुमत के साथ सत्ता में तो वापस लौटी, मगर खटीमा में सिंटिंग सीएम पुष्कर सिंह धामी की हार को नहीं बचा सकी। जिसके बाद से नए सीएम को लेकर अटकलों का दौर चल निकला है। मीडिया में कई नामों को उछाला जा रहा है। यहां तक कि संभावित दावेदारों की ‘समर्थक मीडिया’ भी उनके लिए ‘कसीदा-कारी’ शुरू कर चुकी है। वहीं, एक बेहतर अवसर को भांप कर कुछ संभावित दावेदार दिल्ली की तरफ दौड़ भी चुके हैं।
दूसरी तरफ पुष्कर सिंह धामी को ही दोबारा कमान सौंपने के लिए तर्क गढ़े जा रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में जिस तरह हार कर भी ममता बनर्जी ही मुख्यमंत्री बनी, उसी तरह धामी को भी सीएम बनाया जा सकता है। यहां तक कि कई निर्वाचित विधायकों ने उनके लिए अपनी सीटों को कुर्बान करने तक का ऐलान कर डाला। इनमें कैलाश गहतोड़ी, सुरेश गड़िया, रामसिंह कैड़ा, प्रदीप बत्रा, मोहन सिंह मेहरा आदि के नाम शामिल हैं।
बता दें कि पार्टी ने चुनाव से पहले पुष्कर सिंह धामी को सीएम को चेहरा घोषित किया था। लेकिन चुनाव हारने के बाद अभी तक उन्हें दोबारा सीएम बनाने को लेकर हाईकमान की तरफ से कुछ भी चर्चा नहीं की गई है। यहां तक कि मीडिया से बातचीत में भी अब तक ऐसा कुछ सामने नहीं आया है।
यह कि उत्तराखंड में सीएम के दायित्व का निर्णय आलाकमान को करना है। पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ही इसका फैसला करेंगे। इससे पहले निर्वाचित विधायकों से रायशुमारी के लिए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और धर्मेंद प्रधान को पर्यवेक्षक तय किया गया है। उनकी रिपोर्ट के बाद ही फैसला आना है।
अब मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि हाईकमान ने ऐसे बयानों का संज्ञान लेने के बाद संबंधित विधायकों में से कुछ को फटकार लगाई है। पूछा है कि क्या उन्हें पार्टी ने ऐसा करने को कहा है, नही ंतो फिर बेवजह बयानबाजी क्यों? पार्टी के एक्शन में आने के बाद फिलहाल अब यह सिलसिला थमा लग रहा है।
जानकारी बताते हैं कि इस तरह की बयानबाजियों के पीछे चहेता बनने से ज्यादा प्रेशर बनाने की रणनीति ज्यादा है। लेकिन शायद ऐसे विधायकों ने सोचा नहीं कि इससे आलाकमान की भृकुटि भी तन सकती है। खैर, फैसला आने में अभी वक्त है। नई सरकार का शपथ ग्रहण भी होली के बाद ही होना है। देखना दिलचस्प होगा कि इस रेस में कौन आगे निकलता है।