
ऊखीमठ। केदारघाटी ने आज एक विलक्षण सपूत खो दिया। अपनी विद्वता, सहजता, सरलता और मृदुलता के धनी आचार्य हर्ष जमलोकी 75 वर्ष की आयु में इस नश्वर संसार को हमेशा के लिए छोड़ गए। आज पैतृक घाट पर उनकी अंत्येष्ठि की गई। अंतिम विदाई में बड़ी संख्या में क्षेत्र के तमाम लोग शामिल हुए।
हर्ष जमलोकी न सिर्फ विद्वान आचार्य थे बल्कि हरदिल अजीज भी थे। हाल में वे स्वास्थ्य जांच के लिए देहरादून गए थे लेकिन वापसी के समय नरेंद्रनगर के पास दोबारा तबीयत बिगड़ने पर ऋषिकेश एम्स ले जाया गया, जहां हृदयाघात से उनका निधन हुआ।
बता दें कि आचार्य हर्षमणि जमलोकी के पिता स्व. आचार्य श्रीधर जमलोकी भी प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे उत्कृष्ट शिक्षक होने के साथ उच्च कोटि के कवि भी थे। उनकी रचना अश्रुमाला अपने युग बोध का न सिर्फ आख्यान बल्कि एक जीवंत दस्तावेज मानी जाती है। अश्रुमाला उस कालखंड के समाज का प्रतिबिंब मानी जाती है। उन्होंने संस्कृत के महाकवि कालिदास के मेघदूत का गढ़वाली रूपांतर भी किया था। इसके अलावा भी उनकी अनेक रचनाएं अपने समय में चर्चित रही।
आचार्य हर्षमणि जमलोकी के सुपुत्र आचार्य विश्वमोहन जमलोकी वर्तमान में बीकेटीसी में वेदपाठी हैं और अपने पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। आचार्य हर्षमणि जमलोकी का निधन अविश्वसनीय सा लगता है लेकिन जीवन का अंतिम सत्य तो यही है।
आचार्य हर्षमणि जमलोकी एक ऐसा व्यक्तित्व थे जो किसी की भी पीड़ा देखते तो उनकी आंखें नम हो जाती थी। श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के सदस्य और वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती ने आचार्य हर्ष जमलोकी के असामयिक निधन को संपूर्ण केदारघाटी के लिए अपूरणीय क्षति बताया। कहा कि उनका इस तरह अचानक चले जाना बेहद अखर रहा है। वे अपने पूर्वजों की परम्परा में लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान थे। उनका असमय जाना अत्यंत दुखद है।
पत्रकार राजेश सेमवाल तो उन्हें ज्ञान का चलता फिरता कोषागार मानते हैं। बकौल राजेश आचार्य हर्षमणि जमलोकी का जाना अत्यंत दुखद है। बीकेटीसी से आचार्य पद से सेवानिवृत्त स्व. जमलोकी ने ताउम्र धर्म, अध्यात्म, भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने में हरसंभव योगदान दिया। वह हमेशा लोगों के दिलों में बसे रहेंगे।
भाजपा नेता आशुतोष किमोठी ने हर्षमणि जमलोकी के निधन को क्षेत्र के लिए बड़ा सदमा बताया है। कहा कि ऐसे व्यक्तित्व सदियों में जन्म लेते हैं।