
Politics of Harish Rawat: उत्तराखंड कांग्रेस के भीतर जिस तरह से उथल-पुथल मची हुई है, उसी तरह पूर्व सीएम हरीश रावत का मन डांवाडोल है। अब उन्होंने अपने स्वास्थ्य से राजनीतिक स्वास्थ्य को भी जोड़कर एक नया संकेत दिया है, जिससे उनके उत्तराखंड की राजनीति से किनारा करने के तौर पर भी देखा जा रहा है।
पूर्व सीएम हरीश रावत ने दो दिन पहले की अपनी पोस्ट में कहा है कि -मेरा स्वास्थ्य व राजनैतिक स्वास्थ्य दोनों स्थान परिवर्तन चाह रहे हैं। अर्थात उत्तराखंड से दिल्ली की ओर प्रस्थान किया जाए।’ इस बात से वह दिल्ली में अपने 1980 के दौर की यादों को ताजा करते हैं। जब उन्हें श्रमिक संगठनों और कर्मचारियों के चहते नेता बने थे। इन्हीं के साथ उन्होंने प्रवासियों और श्रमिक संगठनों के साथियों ललित माखन, रंगराजन कुमार मंगलम को भी याद किया है।
आगे कहते हैं कि ‘जब कर्मचारी संगठनों में कांग्रेस का असर निरंतर घट रहा है। मेरा मन बार-बार कह रहा है देशभर में फैले हुए अपने पुराने साथियों को जो आज भी सक्रिय हैं उन्हें जोड़ूं और पुराने संगठन को खड़ा करूं।
इसी तरह वह उस दौर में प्रवासी गढ़वाली और कुमाउनी समाज कई लोगां को याद कर कहते हैं कि ‘उन्होंने मुझे रामलीलाओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और भी बहुत सारे सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से दिल्ली में रह रहे गढ़वाली और कुमाऊंनी भाईयों से जोड़ा। बल्कि थोड़ा बहुत गढ़वाल के लोगों के साथ जुड़ाव बढ़ाने में हमारे तत्कालीन सांसद त्रेपन सिंह नेगी जी का भी बड़ा योगदान था।’
इसी पोस्ट में हरदा कहते हैं कि ‘एक समय था, उत्तराखंड के प्रवासियों में कांग्रेस का बड़ा दबदबा था, आज वो दबदबा भाजपा और आप का बन गया है। मेरे मन में लालसा है कि एकबार फिर दिल्ली स्थित उत्तराखंड प्रवासियों में कांग्रेस को मजबूत करूं।’
सो, हरदा की इस पोस्ट से कई तरह संकेत मिलने की बात सियासी जानकार कर रहे हैं जिनमें उनके उत्तराखंड की सियासत से दूर होने की बात भी हो रही है, तो उन्होंने शायद हाईकमान के संकेत को भी भांप लिया है। इसलिए वह अब दिल्ली की राजनीतिक जमीन पर रहना चाहते हैं, हालांकि दिल्ली जाने का मूल कारण उन्होंने अपने स्वास्थ्य को बताया है।