ये दौर हैं
जब आप किसी
सुबह को
ढलती रात के
साए की तरह देखते हैं
उजली सी रात से
विदा लेते हुए पल ..
हो सकता है कि सवेरे हों
कहा नहीं जा सकता?
सुबह या धूप को
खिड़कियों से
झाँकने वालों के बारे में
क्या कहेंगे?
इसलिए भी कि
सबकी यह मौसमी चिंता नहीं,
बल्कि चिंतन है
अब ये कितना आभासी
और काल्पनिक है
सोचना होगा?
समय के साथ
धूप भी महीन सी उतरती है,
बारिश में कोई पेड़
भीगता नहीं…!
और मौसम के बारे में
क्या कहें? इसे तो उतरना है…