
• बीना बेंजवाल
‘जेम्स वाट की केतली’, ‘खिलता है बुरांश’, ‘लौट आओ शिशिर’ तथा ‘नदी की उंगलियों के निशान’ के बाद कथाकार कुसुम भट्ट का पांचवां कथा संग्रह ‘पिघल रही है बर्फ़’ समय साक्ष्य से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में कुल 12 कहानियां संकलित हैं।
कुसुम भट्ट की इन कहानियों में खुले आसमान, ठंडी हवा, हरियाले पहाड़ तथा पंछियों की बोली वाला चखुली का गांव है, तो भय और शंका की नागफनी उगाता निर्मला दीवान का शहर भी है। आवश्यकता पड़ने पर दरांती की जगह हाथ में त्रिशूल उठाती सोना है। अपने स्वाभिमान के साथ समझौता न करने वाली शारदा ताई है। सारे झमेलों को पृथ्वी से बाहर डाल एक हिलते हाथ पर आंखें टिकाए शिखा है।
झाड़ी कंदराओं में शिकार खोजता मोटा है, तो तराना खुशबू की देह पर अश्लील कविता करने वाला काबिल कवि भी है। किन्हीं कमजोर क्षणों में की गई भूल को स्वीकारता कृष्णा है। यहां बसन्ती के सपनों पर झपटती चील है। लालटेन की रोशनी के वृत्त में बिला गई एक रस से छलकती दुनिया को खोजती लेखिका की इन कहानियों में बहती अलकनंदा एवं नयार की प्रवाहमयता भाषा में भी नज़र आती है।
यहाँ रोती-कलपती अनगिन छायायें सदियों की पीड़ा की गठरी उठाये चली आती हैं। खोलती हैं गठरी तो भरभरा कर गिरते हैं दुख। जैसे पत्थर! जख्म टीसते रहते हैं। मन कभी न खत्म होने वाले हाहाकार से जूझता रहता है। और फिर वो समय भी आता है जब सूखी आंखों का डबडबाना बर्फ़ के पिघलने का संकेत देता है।
संग्रह की पहली कहानी ‘आखिरी सांस टूटने पर’ निन्यानवे साल की उम्र में काया के पिंजर से मुक्त हुई बूढ़ी चखुली के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बेटे-बहुओं के होते अकेले रहती है। उसे पेंशन मिलती है पर स्वयं खाना बनाने में असमर्थ है। जिसे लोग चाय पिलाते हैं, खाना खिलाते हैं पर अपने घर में बहू की ओर से उसे घुड़की मिलती है- ”मुझसे कुछ चाहिए तो पेंशन इधर सरका पूरी की पूरी।” ‘या देवी सर्वभूतेषु’ एक शक्तिरूपा की पवित्र खिलखिलाहट के वासना के भेड़िये के अन्त हेतु अट्टाहास में बदल जाने की कहानी है।
‘चील’ शीर्षक कहानी में एक बच्ची को बचपन के सपने में अपनी चोंच में उठाकर कुएं में फेंकती चील बाद में उसे कच्ची हल्दी, दही, चंदन से मल-मलकर नहलाये जाते हुए तांबे के भगोने में भी फड़फड़ाती मिलती है। और फिर सब देखते हैं, वो चील नीले आकाश में उड़ रही थी, उसकी चोंच में कौड़ी जैसा कुछ था, शायद किसी मृत बच्ची की आंख!!
‘तुम लौट आये’ कहानी समय के सताये, समय के हाथों दुरदुराये, अकेलेपन से घबराकर लौट आये उस पुरुष की कहानी है जो पहले भूल गया था कि समय वापस लौटकर अपना कर्ज मांगता है मय ब्याज के। और जिसे उत्तर मिलता है, ‘अब नहीं पिघल सकती बर्फीली नदी, जाओ सिद्धार्थ!’ बेटों के बार-बार कहने पर भी अपना गाँव, अपने पेड़ न छोड़ सकने तथा दुर्लभ गुणों वाली एक जीवट स्त्री के कारुणिक अन्त की कथा है ‘शारदा ताई’।
जिस ‘भूखी और गन्दी लड़की’ को लेखिका अपनी स्मृति की कन्दराओं क्या मानो पृथ्वी से भी बाहर फेंक चुकी थीं। उसी की अदृश्य आवाज़ एक दिन उनके ऊपर इस तरह गिरती है, ‘मेरे गांव आयेगी मोना? मेरे बगीचे के खट्टे-मीठे आम चूसने। गोया ज़िन्दगी का रस चूसने।’
‘पिघल रही है बर्फ़’ शीर्षक कहानी में मीरा के नाम लिखा कृष्णा का पत्र पढ़कर अपने भीतर की कोठरी में अंधेरे में लड़खड़ाती, मकड़जालों को तोड़ती, एक-एक शब्द का मतलब चीह्नती नर्मदा की सूखी आंखों का डबडबाना ही बर्फ़ का पिघलना है।
‘पंछी उड़ान इन्द्रधनुष’ कहानी भोर के झुटपुटे में प्रेम एवं विश्वास की एक डायरी थमा देती है। संग्रह की ‘सफर खूबसूरत हो’ कहानी भय की सर्द लहर के बीच अंधेरी रात में सुनसान जगह पर जोर से चीखती और विवशता के आंसू छलकाती मिलती है।
‘इन कहानियों में जीवन को उत्कृष्ट बनाने की कल्पना का पथरीले यथार्थ से टकराकर होता ‘रूपान्तरण’ है। सपने में फूटकर आंखें खोलता ‘क्षमा करना केदार’ का मौन है। ये कहानियां कहीं ‘बेटे की माँ’ के चेहरे की धूप को पढ़वाती हैं तो कहीं गांव के बाशिंदों की रीढ़ तोड़ने वाली हँसी भी सुनवाती हैं। यहां दिल पर पड़ी खरोंचें हैं, पत्थर को पिघलाने वाली मार्मिक रुलाई है। इन कहानियों में अपने समय और समाज का स्वाभाविक चित्रण मिलता है। ये भोगे हुए यथार्थ की कहानियां हैं जिनमें स्त्री-चित्त की करवटें और सलवटें हैं।
ये बहुत ही सुखद संयोग था कि आधुनिकता बोध लिए इन कहानियों के पात्रों से मेरी मुलाकात अपने गांव की उस पुरानी डंड्याळी में हुई, बचपन में जिसके आले पर रखी गद्य संकलन नामक पुस्तक में पढ़ी फणीश्वर नाथ रेणु जी की कहानी ने साहित्यिक अभिरुचि बढ़ाई थी। यात्रा की वापसी पर श्रीनगर से आगे बग्वान से सामने पहाड़ी पर बसे उस गांव को भी देखने का प्रयास करती रही, जहां से अलकनंदा को निहारने वाली कुसुम साहित्य की कुसुम भट्ट बनीं। इन्होंने भी अपने लेखन की शुरुआत कविताओं से की। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएं छपीं। हिंदी कथा साहित्य में एक विशिष्ट पहचान रखने वाली कुसुम भट्ट को इस पांचवें कथा संग्रह के प्रकाशन और शब्द यात्रा की अनंत शुभकामनाएँ !!
(समीक्षक बीना बेंजवाल जानी मानी साहित्यकार हैं)