नई किताबः शिवप्रसाद जोशी की ‘गिनती के बाहर’
New Book : कवि, अनुवादक शिवप्रसाद जोशी का नया कविता संग्रह है- गिनती के बाहर। 20वीं सदी के आखि़री वर्षोंं से लेकर हाल के समय तक लिखी गयी ये कविताएँ कल, आज और कल के बुनियादी सवालों से जूझती हैं।
समकालीनता से उनकी बहस में नये कोने खुलते हैं, उनसे नये रास्तों में दाखि़ल होने की आवाज़ आती है, और उनमें दर्ज बेचैनियाँ नये ज़ुल्मों के लिए ख़ुद को तैयार करने वाली तपिश में डूबती-उतरती हैं। तमाम प्रपंचों को वे न सिर्फ़ मुस्तैद ईमानदारी में देखती रहती हैं, बल्कि उनके विरुद्ध अपने मानवीय सामर्थ्य का निर्माण भी करती हैं। हमेशा की तरह, संगीत इन कविताओं की धुरी है।
प्रिय पाठक, शिवप्रसाद जोशी के पहले कविता संग्रह ’रिक्त स्थान और अन्य कविताएँ’ की तरह प्रस्तुत नये संग्रह को भी पसंद करेंगे। आशा है यह संग्रह पाठकीय चेतना को ऐसे ही छू पाएगा, फिलस्तीनी कवि महमूद दरविश के शब्दों में, “जैसे एक अकेला वॉयलिन छूता है सुदूर जगह के उपनगरों को/ सब्र के साथ नदी माँगती है अपने हिस्से की फुहार/ और, धीरे-धीरे, कविताओं में गुज़रता कल क़रीब आने लगता है…।”
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