Uttarakhand Politics: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव का असल परिणाम भले ही 10 मार्च को आना है। लेकिन उससे पहले ही कांग्रेस और भाजपा में जिस तरह की हलचल देखी जा रही है, सियासी जानकार उसके एक ही मायने निकाल रहे हैं कि 2022 का चुनाव परिणाम इन दोनों ही दलों के दावों को खारिज कर सकता है। इसका आभास शायद उन्हें हो भी चला है। इसलिए वह अभी से ऐन-केन प्रकारेण सत्ता तक पहुंचने की कोशिशों में जुट गए हैं।
हाल के दिनों में पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के अचानक से सक्रिय होने के बाद से भाजपा ही नहीं कांग्रेस में भी सब भौंचक्के हैं। निशंक को पहले भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली तलब किया, लंबी गुफ्तगू हुई और लौटने पर निशंक सीधे राज्यपाल से भी मिले। दूसरा भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने आज देहरादून आकर निशंक से उनके आवास पर मुलाकात की। बताया जा रहा है दोनों ही नेताओं के बीच लंबी वार्ता का दौर चला।
बता दें, कि उत्तराखंड में वर्ष 2016 के चर्चित राजनीतिक घटनाक्रम में कैलाश विजयवर्गीय बेहद सक्रिय रहे थे। उन्हें दलबदल की राजनीति का मास्टर भी माना जाता है। जिसके चलते अनुमान लगाया जा रहा है कि 10 मार्च को चुनाव परिणाम आने के साथ ही उत्तराखंड की सियासत कुछ बड़ा घटित होने वाला है, और रमेश पोखरियाल निशंक के साथ कैलाश विजयवर्गीय इसके सूत्रधार हो सकते हैं।
रमेश पोखरियाल निशंक की अति सक्रियता के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के दिल्ली से लेकर वाराणसी तक के दौरों को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी चर्चा है कि वह अपनी पोजिशन को बचाने की कवायद में जुटे हैं। क्योंकि पार्टी के अंदर ही एक लॉबी उन्हें रोकने की जुगत में लगी हुई है। हालांकि निशंक को मिले टारगेट (जो कि संभवतः ‘ऑपरेशन सत्ता’ हो सकता है) का इससे कोई संबंध है, यह अभी साफ नहीं।
इस बात पर जरूर अभी कहीं भी कोई स्थिति स्पष्ट नहीं कि अगर निशंक संभावित ‘ऑपरेशन सत्ता’ को कामयाब कर गए, तो उसके बाद उनका नया ‘स्टेटस’ क्या होगा? क्या हाईकमान ने अभी से उन्हें बता दिया कि इस संभावित ऑपरेशन में योगदान का उन्हें क्या लाभ दिया जाएगा? सो, ऐसे ही कई अनुतरित्त सवालों का जवाब 10 मार्च के बाद ही सामने आएगा।