खाराखेत के नमक सत्याग्रह की याद में मनाया हरेला
अगस्त क्रांति और भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ पर खारखेत में जुटे नागरिक संगठन

देहरादून। अगस्त क्रांति और भारत छोड़ो दिवस पर विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों और नागरिकों ने खाराखेत नमक सत्याग्रह स्थल पर आज़ादी के मतवालों का स्मरण किया। वहीं 1945 में आज ही के दिन नागासाकी (जापान) में अणु-बम विस्फोट के त्रासद परिणामों पर क्षोभ व्यक्त करते हुए अणु-मुक्त विश्व शांति की अपील की। इस अवसर पर वहां पौधरोपण भी किया गया।
धाद संस्था द्वारा इस अवसर पर प्रतीकात्मक पौधरोपण कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। हिमांशु आहूजा ने बताया कि 1930 में नमक सत्याग्रह दांडी यात्रा में शरीक यहां के खडग बहादुर सिंह ने यहाँ बह रही निमि नदी के लावण्य गुण का जब जिक्र किया तो गांधीजी ने तुरंत ही सत्याग्रह को यहाँ पर भी करने का सुझाव दिया। यहाँ के आंदोलनकारियों ने सात जत्थों में जाकर इस नदी के पानी से नमक बनाकर और शहर में बेचकर मौजूदा नमक कानून को तोडा। इसमें कई आंदोलनकारियों को 6-6 महीनों की सजा हुई। पूरे नमक सत्याग्रह में शायद यह एकमात्र उदाहरण था कि एक नदी के प्राकृतिक पानी से नमक बनाया गया था।
हिन्द स्वराज मंच के बिजू नेगी ने कहा कि नमक सत्याग्रह का सबसे बड़ा योगदान रहा कि देश की महिलाएं पहली बार बेहिसाब संख्या में अपने घरों से निकल कर सड़कों पर उतरी, और देश की आज़ादी के संघर्ष का अहम हिस्सा बनी। उन्होंने “पेशावर” में चंद्र सिंह ‘गढ़वाली’ और साथी सैनिकों द्वारा अद्वित्य साहस का परिचय देते हुए निहत्थे और शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए खुदाई खिदमतगारों पर गोली चलाने से मना करने को भी नमक सत्याग्रह द्वारा तैयार किए गए माहौल के फलस्वरूप बताया।
इतिहासकार योगेश धस्माना ने बताया कि आज ही “काकोरी दिवस” भी है, जब 1925 में राजेंद्र लाहिड़ी, अशफ़ाक़ उल्लाह खान और राम प्रसाद “बिस्मिल” व साथियों ने अदम साहसी रेल कार्यवाही कर उससे खजाना लूटा था, और जिसके लिए उन्हें बाद में फांसी हुई थी। नमक सत्याग्रह में स्थानीय स्तर पर महिलाओं के योगदान को रेखांकित करते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह शर्मदा त्यागी (स्वतंत्रता सेनानी व बाद में केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी की पत्नी), अन्य महिलाओं के साथ मिलकर पुरूषों द्वारा खाराखेत के नमक को शहर में बेचकर कानून को तोड़ती थीं।
मैती आंदोलन के पद्मश्री कल्याण सिंह रावत का सुझाव था, सरकार पर बगैर निर्भर होकर, समाज को स्वयं स्थानीय गांववासियों के सहयोग से इस सत्याग्रह स्थल के सौन्दर्यकरण व रख-रखाव का संकल्प लेना चाहिए।
भारत ज्ञान विज्ञान समिति की ओर से इस क्षेत्र में प्रधानाध्यापक रह चुके सोबन सिंह रावत ने उस समय की परिस्तिथियों की बात की जब ये ऐतिहासिक गांव पूरी तरह उपेक्षित था और किस तरह यहाँ के निवासी पलायन करने पर मजबूर हुए।
धाद संस्था के तन्मय ममगाईं ने शहर के स्थानीय निवासियों में इस ऐतिहासिक क्षेत्र को लेकर अज्ञानता पर चिंता जाहिर कर, खाराखेत को अपने हरेला कार्यक्रम का हिस्सा बनाकर व इसे लोगों के बीच ले जाकर अभियान का स्वरुप देने की बात की।
इस अवसर पर दून लाइब्रेरी व रिसर्च सेंटर के चंद्रशेखर तिवाड़ी ने भी सभा को सम्बोधित किया। सिटीजन फॉर ग्रीन दून के अनीश लाल, रूचि सिंह राव व इरा चौहान द्वारा लाये गए पौधों से सभी ने पूरे सत्याग्रह स्थल पर वृक्षारोपण किया।
मौके पर भारत ज्ञान समिति के दिगंबर, वरिष्ठ नागरिक संगठन के ताजवर सिंह रावत, कार्की, शशि भूषण जोशी, धाद संस्था के गणेश उनियाल, आशा डोभाल, अर्चना ग्वारी, साकेत रावत आदि मौजूद थे।