सांसु कनु छौ सच लिखणू छौ हरबि रिटणू छौं।
क्वांसु पराण,छौं मिलनसार फिर बि रिटणू छौं।।
घर-बौण, गौं-गौला छुटिन जै आराम का खातिर।
आज भि बाटा-घाटा ढुंढणू छौ हरबि रिटणू छौं।।
कना कना बंदोबस्त छन रंगीली दुनिया यख।
शौक पर शौक बढाणूं छौ मि फिरबि रिटणूं छौं।।
सोचि क्या छौ क्या होणु च बडि बडि दुकन्यूं मां।
मैहलूं बैठी राणू- खाणू छौं मि हरबि रिटणू छौं।।
स्वाद नीच, निंद नीच, जिकुडि कु चैन हरच्यूं चा।
उंद उंद जैकि फुण्ड पड्यूं छौं, फिरबी रिटणूं छौं।।
बिन पाण्यूं माछु बण्यूं छौं रात दिन तडफणू छौं।
माटु छोडी सरग चढ्यूं छौं फिरबि रिटणूं छौं।।
सिकासौरिन घर कूडी़ छोड़ी किरैदार बण्यूं छौं।
ज्यू जान सि लग्यूं साईनी फिरबि रिटणूं छौं।।
(कवियत्री साईनीकृष्ण उनियाल श्रीनगर गढ़वाल की निवासी हैं)