
Rishikesh Assembly Chunav 2022: ऋषिकेश विधानसभा में अब तक के चुनावों में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थितियां रही। हर बार कोई न कोई निर्दलीय तीसरे कोण में चुनाव पर असर डालता रहा। मगर, 2022 का असेंबली इलेक्शन चतुष्कोणीय होने की तरफ बढ़ता लग रहा है। आज से पहले तक यहां परंपरागत तौर पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस-भाजपा के बीच ही रहा है। जबकि इसबार ‘अंडर करंट’ की बात चर्चाओं में है। जो कि भाजपा और कांग्रेस से इतर दो युवा चेहरों के इर्दगिर्द बताई जा रही है। वह हैं आम आदमी पार्टी से डॉ. राजे सिंह नेगी और उत्तराखंड जनएकता पार्टी से कनक धनाई। तो क्या इन दोनों युवाओं को जनता पसंद कर रही है? क्या 20 साल कांग्रेस और भाजपा को देने के बाद जनता का रुझान ‘नए विकल्पों’ पर भी सोच रहा है? ये सवाल चर्चाओं में क्यों हैं, उन वजहों को टटोलें जरा….।
बता दें, कि इस विधानसभा सीट पर 2002 के पहले चुनाव में हर्षवर्धन शर्मा (8355) और राजेंद्र शाह (8308) ने मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाया था। दूसरे में जयदीप नेगी 13146 वोट तो तीसरे चुनाव में दीप शर्मा 17669 मतों के साथ तीसरे नंबर पर रहे। चौथे चुनाव में यह जगह भाजपा के बागी प्रत्याशी संदीप गुप्ता (17149) को मिली। चारों ही चुनावों में एक बात कॉमन थी, कि यह सभी प्रत्याशी निर्दलीय थे, और ऋषिकेश ने कभी ‘निर्दलीय’ पर भरोसा नहीं जताया। जबकि इसबार सीन अलग है। अबके मैदान में कोई कदावर निर्दलीय नहीं बल्कि दो युवा चेहरे हैं और वह भी दो पार्टियों के घोषित कैडिडेट।
2022 के इस चुनाव में ऋषिकेश असेंबली में यह चर्चा जोरों पर है खासकर युवा और महिलाओं में कि परंपरागत पार्टियों की बजाए इन दो चहेरों को भी सुना जा रहा है। शायद इसलिए कि जहां राजे सिंह नेगी की यूएसपी उनका सामाजिक बैकग्राउंड के साथ ही एक नए विकल्प के तौर पर उभरी पार्टी से जुड़ा होना है, जिसने दिल्ली की तर्ज पर उत्तराखंड में कई जमीनी वायदों को गारंटी के रूप में पेश किया है। वहीं, कनक धनाई की यूएसपी में उनका जुझारूपन, परंपरागत राजनीति से हटकर विजन, स्थानीय मुद्दों पर संघर्ष करने की क्षमता जुड़ी बताई जा रही हैं। जो कि सर्वाधिक वोट करने वाले तबके को पसंद आ सकती है।
अब बात वोट बैंक की, तो भाजपा और कांग्रेस के पास कैडर वोट के साथ एक समर्थक भी वर्ग हमेशा से रहा है। मगर, उन्हें जीत का स्वाद ‘नए’ और ‘फ्लोटिंग’ वोट से मिला, जो हरबार ‘नए प्रयोग’ को तरजीह देता रहा है। जबकि आम आदमी पार्टी और उत्तराखंड जनएकता पार्टी का यह पहला चुनाव होने के चलते उनके पास न कैडर वोट है, और न परंपरागत समर्थक। मगर, नए वोटर और फ्लोटिंग वोट ‘नए प्रयोग’ के तौर पर उनकी संभावनाओं को फलीभूत कर सकते हैं? ऐसा सियासी हलके में भी माना जा रहा है।
… तो क्या यह मानकर चलें, कि मौजूदा दौर में 21 साल की सियासत से जो निराश हैं, या जिन्हें बदलाव में अपने क्षेत्र की बेहतरी झलक रही है, उनका रुझान मतदान का दिन आने तक इनकी तरफ रुख करेगा! या कि दोनों ही परंपरागत दलों के ‘भीतर’ जो असंतुष्ट हैं, वह अपनों को इन विकल्पों की तरफ भी इशारा करेगा!! और क्या यही वह ‘अंडर करंट’ हैं, जिनकी चर्चाएं हवाबाजी कर रही हैं?
खैर, 14 फरवरी के दिन तक माहौल और हवा को क्या पंसद और क्या ना पसंद होगा, यह 10 मार्च के परिणाम से साफ हो जाएगा। लेकिन फिलहाल इस सर्द मौसम में लोकल सियासत को यह दोनों ही युवा चेहरे गर्माहट देते जरूर दिख रहे हैं।