Rishikesh Assembly Election 2022: इस हेडिंग से आप सोच रहे होंगे कि आखिर माजरा क्या है? तो एक किस्सा है नगर निगम ऋषिकेश चुनाव का। जो कि मौजूदा असेंली इलेक्शन से जुड़ता सा लग रहा है। बशर्ते कि चुनाव परिणाम भी इस किस्से के मुताबिक ही आया तो….।
दरअसल, नगरपालिका परिषद ऋषिकेश के नगर निगम में उच्चीकृत होने के बाद वर्ष 2018 में पहला चुनाव हुआ। जो कि महिला आरक्षित थी। जिसे लेकर सबसे पहले भाजपा में टिकट को लेकर बड़ा घमासान रहा। पार्टी के संभावित दावेदारों के आखिरी पैनल में कुसुम कंडवाल, चारु माथुर कोठारी और अनिता ममगाईं के नाम शामिल थे। तब पार्टी के भीतर और स्थानीय राजनीति के जानकार अनिता ममगाईं को टिकट की दौड़ में भी तीसरे नंबर पर मानकर चल रहे थे। पहले पर कुसुम कंडवाल और दूसरे पर चारु माथुर कोठारी को रखा गया था। मगर, टिकट की बाजी अनिता ममगाईं के हाथ लगी।
इसके बाद कहानी शुरू हुई बगावत की। कुसुम कंडवाल और चारु माथुर ने बगावत कर पर्चा दाखिल किया, तो कुसुम ने जमीन पर अपना कैंपेन भी शुरू कर दिया था। खैर, पार्टी ने किसी तरह डैमेज कंट्रोल कर दोनों को ही नाम वापसी के लिए राजी किया। इस लड़ाई को जीतने के बाद असल मुकाबला चुनाव में मैदान में था। जिसे कड़े मुकाबले के बावजूद आखिर में अनिता ने ही जीता। वह ऋषिकेश की पहली मेयर बनी।
अब बात मौजूद विधानसभा चुनाव की। इसमें टिकटों को लेकर कुछ इसी तरह का घमासान कांग्रेस के भीतर रहा। नौ दावेदारों में से पार्टी के अंतिम पैनल में तीन नाम पूर्व काबीना मंत्री और एक बार इसी सीट से विधायक रहे शूरवीर सिंह सजवाण, दो बार विधायकी का चुनाव लड़ चुके राजपाल खरोला और युवा जयेंद्र रमोला का था। इसबार भी ठीक निगम चुनाव जैसा घटनाक्रम सामने आया। जयेंद्र को भी जानकार टिकट की दौड़ में तीसरे नंबर पर लेकर चल रहे थे और अनिता की तरह ही आखिरी वक्त में जयेंद्र के नाम ही अधिकृत प्रत्याशी का टिकट फाइनल हुआ।
इस घोषणा के बाद तो मानों पार्टी के भीतर भूचाल ही आ गया। अगले ही दिन शूरवीर और राजपाल एक मंच पर आ गए। यहां तक कि दोनों के बीच एक के चुनाव मैदान में उतरने पर रजामंदी भी हो गई। शूरवीर सिंह सजवाण ने बाकायदा ऐलान कर निर्दलीय पर्चा भरा। जबकि इसबीच नामांकन स्थल तहसील परिसर के बाहर जयेंद्र रमोला ने उन्हें मनाने की भी कोशिश की। कांग्रेस के लिए इस संकट से निपटना आसान नहीं था। मगर, पार्टी ने संगठन में दोनों का ही ओहदा बढ़ाकर मामला किसी तरह कंट्रोल किया। शूरवीर ने जयेंद्र के पक्ष में नाम वापस लेने के बाद कैंपेन में भी साथ निभाया।
सो, जैसे कि टिकट की दौड़ तक के घटनाक्रम संयोगवश नगर निगम और मौजूदा विधानसभा चुनाव के हूबहू से रहे। तब नगर निगम चुनाव की बाजी भी अनिता ममगाईं के नाम ही रही। तो क्या अब विधानसभा चुनाव में जीत का समीकरण भी ठीक वैसे ही सामने आएगा? यानि कि असेंबली चुनाव में ‘किस्सा ए नगर निगम’ रिपीट हो सकता है? ऐसे की कुछ सवाल ‘मौजू’ हो चले हैं। जिनका असल 10 मार्च को विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही सामने आएगा।