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BJP: रायशुमारी की रार, ‘खेला’ के तो नहीं आसार ?

• धनेश कोठारी

Rishikesh Assembly Chunav 2022: भाजपा (BJP) में ऋषिकेश विधानसभा सीट पर प्रत्याशी चयन को लेकर हंगामेदार रही रायशुमारी बैठक के बाद एक सवाल चर्चाओं में है कि इसबार कहीं 2017 की बगावत या फिर ‘खेला’ होने जैसे हालात तो नहीं बन रहे हैं? ऐसा इसलिए कि पहले के चुनावों के मुकाबले अबके पार्टी के भीतर जहां अंतर्कलह ज्यादा लग रहा है, वहीं दावेदारों की लिस्ट भी लंबी बताई जा रही है।

दरअसल, राज्य के पहले चुनाव 2002 से लेकर 2012 तक इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के भीतर कुछ अंतर्विरोध के बावजूद बगावत जैसे हालात नहीं थे। पार्टी 2002 में बेहद करीबी अंतर यह सीट हार गई थी, मगर इसके बाद पैराशूट कैडिडेट उतारने पर भी 2007 में उसे जीत हासिल हुई, तो 2012 में न सिर्फ विजयश्री मिली, बल्कि जीत-हार का अंतर भी बढ़ा। जबकि 2017 का परिणाम चौंकाने वाला रहा। तब पार्टी का एक धड़ा खुली बगावत कर मैदान में था। फिर भी प्रतिद्वंदी कांग्रेस से जीत का फासला पहले से दोगुना रहा। यानि तब भाजपा में बगावत का नुकसान उसके बजाए कांग्रेस को हुआ।

लेकिन, 2022 के चुनाव में एक बार फिर से ऐसे ही हालात बनते दिख रहे हैं। इसका एक नजारा दो दिन पहले संपन्न रायशुमारी बैठक के दौरान दिखा। इस मीटिंग में सिटिंग एमएलए के खिलाफ दावेदारों, उनके समर्थकों और कुछ कार्यकर्ताओं के जैसे तीखे स्वर सामने आए, उससे माना जा रहा है कि इस दफा विरोध को दबाना आसान भी नहीं। जानकार इसके पीछे कई कारण भी गिनाते हैं। जिनमें अंतर्कलह के अलावा बड़ी वजह ‘नाक की लड़ाई’ को भी माना जा रहा है।

बतातें है कि 2022 के चुनाव में भाजपा के दावेदारों की संख्या कांग्रेस से कहीं ज्यादा है। जिनमें चंद नाम ऐसे बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपने दावे का हश्र पता है, लेकिन दावा इसलिए किया जा रहा है ताकि पार्टी में कद बढ़ जाए। लेकिन, कुछ नाम ऐसे भी हैं जो एक अरसे पहले तक मौजूदा विधायक संग कदमताल मिलाते रहे, लेकिन अब उनके बीच छत्तीस का आंकड़ा बन चुका है। बीते वर्षों में उनके बीच की ये अदावत कईबार सड़कों पर आकर वायरल भी हो चुकी है, और अब यह मामला सीधे चुनौती देने की हद तक पहुंच गया है।

जानकारों का कहना है कि भाजपा को ऐसे हालातों से पार पाना उतना आसान नहीं, जितना बीते चुनावों में रहा। तब पार्टी अनुशासन के अलावा अंदरखाने आरएसएस के दखल से सब कुछ मैनेज होता रहा। किंतु, इसबार ‘दखल मैनेजमेंट’ पार्टी को संकट से निकाल पाएगा, कहना मुश्किल है। चर्चाएं ये भी हैं कदाचित सीधे बगावत नहीं भी हुई, तब अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ अंदरखाने ‘खेला’ भी हो सकता है।

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