
ऋषिकेश (शिखर हिमालय)। दुनिया में डॉ. स्वामीराम को एक संत, समाजसेवी, चिकित्सक, दार्शनिक और लेखक के रुप में ही नहीं, बल्कि मानव सेवा के संदेश वाहक के रुप में भी जाना जाता है।
सन् 1925 में पौड़ी जनपद के तोली-मल्ला बदलपुर में जन्में स्वामीराम ने किशोरावस्था में ही संन्यास की दीक्षा ले ली थी। उन्होंने 13 वर्ष की अल्पायु में ही धार्मिक स्थलों और मठों में हिंदू और बौद्ध धर्म की शिक्षा देना शुरू कर दिया था। 24 वर्ष की आयु में वह प्रयाग, वाराणसी और लंदन से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद कारवीर पीठ के शंकराचार्य पद को सुशोभित हुए।
वहीं, सन् 1970 में वह गुरू के आदेश पर पश्चिम सभ्यता को योग और ध्यान का मंत्र देने अमेरिका पहुंचे। अमेरिका में उन्होंने कुछ ऐसे परीक्षणों में भाग लिया, जिनसे शरीर और मन से संबंधित चिकित्सा विज्ञान के सिद्धांतों को मान्यता मिली। उनके इस शोध को 1973 में इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका ईयर बुक ऑफ साइंस व नेचर साइंस एनुअल और 1974 में वर्ल्ड बुक साइंस एनुअल में प्रकाशित किया गया।
डॉ. स्वामीराम ने स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित उत्तराखंड में विश्वस्तरीय चिकित्सा संस्थान बनाने का जो सपना देखा था उसे 1989 में आकार देना शुरू किया। इसी साल हिमालयन इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल ट्रस्ट की स्थापना की गई। ग्रामीण क्षेत्रों तक स्वास्त्य सुविधाओं के पहुंचाने के मकसद से 1990 में रुरल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट (RDI) व 1994 में हिमालयन अस्पताल की स्थापना की।
प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को महसूस करते हुए उन्होंने 1995 में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की। नवंबर 1996 में स्वामीराम ब्रह्मलीन हो गए। इसके बाद उनके उद्देश्य व सपनों को साकार करने का जिम्मा ट्रस्ट के अध्यक्षीय समिति के सदस्य व स्वामी राम हिमालयन यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने उठाया।
आज डॉ. धस्माना की अगुवाई में ट्रस्ट निरंतर कामयाबी के पथ पर अग्रसर है। 2007 में कैंसर रोगियों के लिए अत्याधुनिक अस्पताल कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यट (CRI) की स्थापना की। 2013 में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए जॉलीग्रांट में स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (SRHQ) स्थापना की गई। इसके तहत सभी शिक्षण संस्थाएं संचालित की जा रही हैं।