‘देवस्थानम’ पर काम आया ‘धामी’ का ‘राजनीतिक कौशल’
- तीर्थ पुरोहित भी राजी, भाजपा से कुछ कम होगी नाराजगी

• धनेश कोठारी
देवस्थानम बोर्ड से सरकार और तीर्थ पुरोहितों को क्या फायदे- नुकसान होंगे, इस पर उनके अपने-अपने तर्क और दावे हैं। मगर, फिलहाल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गतिरोध को थाम कर अपने राजनीतिक कौशल को तो दिखाया ही है। उन्होंने इस आंदोलन के जरिए भले ही कुछ समय के लिए, पर सरकार और भाजपा के खिलाफ बढ़ती अविश्सनीयता को भी बढ़ने से रोक दिया है।
वर्ष 2019 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में असेंबली में पारित चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड 2020 में राज्यपाल की मुहर लगने के बाद अस्तित्व में आ गया था। चारों धामों के तभी से तीर्थ पुरोहित और हकहककूधारी इसके विरोध में उतर गए थे। उन्हें इस एक्ट से अपनी पुश्तैनी परंपराओं के खत्म होने की आशंका है। मामला वरिष्ठ वकील सुब्रह्मण्यम स्वामी के जरिए कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन कोर्ट से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली। लिहाजा, उनके पास अपना पक्ष रखने के लिए आंदोलन ही आखिरी रास्ता बचा।
बोर्ड के खिलाफ चारों धामों बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में आंदोलन ने अपना असर दिखाना शुरू किया। आसपास के क्षेत्रों से भी आंदोलन को समर्थन मिलने लगा। खबरें देश के कई हिस्सों तक पहुंचने लगी। फिर भी त्रिवेंद्र सिंह से लेकर तीरथ सिंह रावत तक समाधान की कोई सूरत नजर नहीं आयी। सीएम पद से हटने के बाद भी त्रिवेंद्र सिंह अपने फैसले के पक्ष में तमाम तर्क देते रहे। मुख्यमंत्री बदले, तीर्थ सिंह रावत ने पुनर्विचार की बात कही, लेकिन मामला नहीं सुलटा। फिर कमान पुष्कर सिंह धामी के हाथ आयी तो उन्होंने इसे गंभीरता से ही नहीं लिया बल्कि एक हाई पावर कमेटी भी बनाई। जिसकी रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार अगला कदम उठाएगी।
उधर, कांग्रेस ने राजनीतिक फायदे को भांपा और लगे हाथ सरकार बनने की स्थिति में देवस्थानम बोर्ड खत्म करने की बात कहनी भी शुरू कर दी। जिसका दबाव भाजपा सरकार पर भी साफ दिखा। मुद्दा भाजपा के मिशन 2022 पर हावी न हो, इसलिए धामी ने इसको ‘मैनेज’ करने में जुट गए। उन्होंने न सिर्फ तीर्थ पुरोहितों और हकहकूधारियों को वार्ता की टेबल तक आने के लिए राजी किया, बल्कि आंदोलन को स्थगित कराने में कामयाबी हासिल की।
सियासी जानकारों की मानें तो इसी वर्ष नवंबर महीने में 2022 के आम चुनाव को लेकर आचार संहिता लग जाएगी। जिसके बाद सरकार किसी भी निर्णय को करने की स्थिति में नहीं होगी और यही ‘एक्सक्यूज’ चुनावों में उनके काम भी आ जाएगा। दूसरा इस आंदोलन के जरिए भाजपा से दूर होते अपने ही समर्थकों की नाराजगी को फिलवक्त के लिए टाल दिया है।