धादः सतपुली संवाद से ‘हरेला गांव अध्याय’ शुरू
• सामाजिक नेटवर्क, कृषकों का सम्मान, जंगली जानवर और बंजर जमीन के मुद्दों पर विमर्श

• मल्ली गांव के हल्दी उत्पादन और बाजार के लिए होगी पहल
सतपुली। सामाजिक संस्था ‘धाद’ ने ‘हरेला गांव अध्याय’ सतपुली संवाद के साथ शुरू किया। इस अवसर पर सतपुली मल्ली के प्रगतिशील किसान देवेंद्र नेगी और गाजियाबाद में निवास कर रहे हरीश डोबरियाल ने अपने गांव में हरेला गांव का अध्याय शुरू करने की पहल की है।
संवाद का शुभारम्भ करते हुए धाद के सचिव तन्मय ममगाईं ने बताया कि धाद ने उत्तराखंड के लोक पर्व हरेला के साथ 2010 में सामाजिक पहल प्रारंभ की। जिसके अंतर्गत पिछले 13 वर्षों में उत्तराखंड के पर्यावरण, पारिस्थितिकी और उत्तराखंड हिमालय में उत्पादकता के सवालों पर आम समाज में गतिविधियां की गई हैं। इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए अब हरेला को दो अलग-अलग अध्याय के रूप में संचालित किया जाएगा। हरेला वन, जिसमें इस दुनिया मे कटते हुए पेड़ो के सवाल, वर्तमान पेड़ो के प्रति संवेदनशील होने की पहल के साथ सामाजिक वन विकसित करने के लिए गतिविधयां की जा रही है।
वहीं हरेला गांव अध्याय के साथ उत्तराखंड हिमालय के गांव के साथ खड़ा होने उन्हे उत्पादन शील बनाने उन्हें सही बाजार दिलवाने की पहल प्रारम्भ की गई है। सतपुली मल्ली गांव के साथ इस प्रयोग को प्रारम्भ किया जा रहा है। इस पहल के अंतर्गत हमने पर्वतीय फलों के पक्ष में सही नीति और बाजार की मांग के साथ माल्टे का महीना अभियान चलाया था।यह संवाद उसके क्रम में आयोजित किया गया है।
संवाद में डबरा गांव के प्रगतिशील किसान और फील गुड संस्था के सुधीर सुन्द्रियाल ने कहा कि पहाड़ में खेती करने के साथ उसकी जंगली जानवरो से सुरक्षा बहुत बड़ा सवाल है, जिसमे संस्थागत हस्तक्षेप की जरुरत है। साथ ही काश्तकार जिन समस्याओ का सामना दैनिक रूप से करता है उसके लिए आवाज उठाने के लिए आम समाज का साथ बहुत जरुरी है। ऐसे उत्पादन को प्राथमिकता दिया जाना चाहिए जिन्हें जानवर कम नुकसान करते है। फील गुड संस्था ने इस दिशा में 18 सूत्री मांगपत्र जारी किया है।
नायर होम सटे के संचालक संजय रावत ने कहा कि पहाड़ में जमीन का मसला बहुत उलझा हुआ है, अधिकांश जमीन के मालिक बाहर है। ऐसे में उनकी जमीन का सदुपयोग तभी हो सकता है जब वहां रह रहे लोगो के साथ उनको उपजाऊ बनने की पहल हो। बंजर जमीन पहाड़ में संकट पैदा केर रही है। इसलिए जरूरी है कि बंजर जमीन रखने पर मालिक को संपर्क करके उन्हें प्रोत्साहित किया जाय और अधिक वर्षों तक बंजर रखने पर मालिकों को एक न्यूनतम जुर्माने का प्रावधान हो।
पार्षद आरती पंवार ने कहा कि जानवरो का प्रभाव और आतंक अब खेती पर बहुत अधिक है इसलिए किसान बहुत निराश भी है। कहीं न कहीं जानवरों के क्षेत्र में हमने अतिक्रमण किया है, इसी कारण वह भी हमारे क्षेत्र में आ रहे हैं। पत्रकार और सामजिक कार्यकर्त्ता डबल नेगी ने कहा कि स्थानीय दुकानदारों के साथ मिलकर नेटवर्क के निर्माण के साथ स्थानीय उत्पादन की छोटी खरीद की जा सकती है। और एक बडी मात्रा में उत्पादन हासिल किया जा सकता है। व्यवसायिक खेती के लिए मानस बनाने की जरुरत है इसके साथ ही क्लस्टर यानी एक जैसे उत्पादन का सघन क्षेत्र बनाना होगा।
ग्रीन पब्लिक स्कूल सतपुली के संस्थापक राकेश डोबरियाल ने कहा कि हमें अपने स्तर पर भी प्रयास करना पड़ेगा। केवल सरकार के भरोसे रहना ठीक नहीं। इसके साथ ही जो लोग ग्राउंड लेवल पर अच्छा कर रहे हैं, उनका समर्थन और सम्मान होना चाहिए। क्लस्टर बनाने की भी जरूरत है। डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर बनाने से मदद मिलेगी। किसान रोहन बिष्ट ने कहा कि परिवर्तन धैर्य मांगता है, हमे निरंतर प्रयास करने होंगे। वह वर्तमान में सेब और अन्य फलों का उत्पादन कर रहे है। इसके साथ बाजार भी उपलब्ध हुआ है। लेकिन पर्वतीय उत्पादन को आगे ले जाने के लिए समाज का सहयोग भी जरूरी है।
फील गुड से जुड़े देवेंद्र गुसाईं ने कहा कि हमे इस क्षेत्र में बड़ी कम्पनियों तक पहुंच बनानी होगी और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जैसे प्रयोग को बढ़ावा देना होगा। भू विज्ञानी उत्तम सिंह रावत ने कहा कि सामुहिकता ही इस चुनौती का उत्तर है। समाज को सामूहिक रूप से श्रम करने के साथ उसके लिए मुखर भी होना होगा। इसमें शासन का दरवाजा लगातार खटखटाने के साथ ही समानांतर रूप से सामाजिक सहभागिता के साथ बाजार की संभावना पर भी काम करने की जरुरत है।
हरेला गांव के सह संयोजक और सतपुली मल्ली के निवासी देवेंद्र नेगी ने कहा कि हमें मिलकर ही यह काम करना है। और यदि सबका सहयोग रहा तो यह प्रयोग जमीन जरूर उतरेगा। संयोजक हरीश डोबरियाल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अगर सामहिक रूप से सही सप्लाई चेन बन सके तो हर छोटे बड़े उत्पादन को सही मूल्य का बाजार मिल सकता है।
कार्यक्रम अध्यक्ष धाद के केंद्रीय उपाध्यक्ष डीसी नौटियाल ने कहा कि हमे शासन में सम्बद्ध मंत्री के साथ सचिव और अन्य विभागीय मंत्रियों को भी अपने मांगपत्र सौंपने होंगे। धाद के हरेला अभियान ने अब विधिवत गांव का रुख कर लिया है, यह शुभ संकेत है। जिस तरह हरेला अभियान ने पहले समाज फिर शासन के एजेंडे में स्थान बनाया है, उस तरह से अब हरेला गांव भी आने वाले समय मे नई राह बनायेगा। मौके पर साकेत रावत, गायत्री देवी, अरुण नौगाईं, देवेंद्र गुसाईं, आकाश पांडेय, टेक राम आदि भी मौजूद रहे।