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पुलिस की छवि को रेशा-रेशा खोल देती है ‘कोतवाल का हुक्का’

दून में कहानी संग्रह पर साहित्यकारों के संग कथाकार का संवाद कार्यक्रम आयोजित

देहरादून। पुलिस लाइन रेसकोर्स में रविवार को काव्यांश प्रकाशन की ओर से प्रकाशित अमित श्रीवास्तव के कहानी संग्रह ‘कोतवाल का हुक्का’ पर अनौपचारिक चर्चा व लेखक से संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। चर्चाकार श्रीकांत दूबे ने कहानीकार और उनकी कहानियों के शिल्प पर विमर्श किया। वहीं कार्यक्रम में संवाद के जरिए पुस्तक पर विस्तृत चर्चा की गई।

संवाद कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं का कहना था कि कोतवाल का हुक्का कहानी संग्रह में संवेदनशील मसलों पर कहानियां है। गलतफहमी व परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के चलते भलमनसाहत में कदम उठाए सजायाफ्ता पुलिसकर्मियों की कहानियां भी हैं। जहां अधिकांश लघुकथाएं परिभाषिक सी प्रतीत होती है, वहीं लंबी कहानियां पुलिस की छवि और हैसियत को रेशा-रेशा खोल कर रख देती है।

उन्होंने कहा कि कथाकार अमित श्रीवास्तव के लेखन में एक खास बात देखने में आती है कि कहानी को वे कविता की दृष्टि से देखते हैं। वे पिटे हुए वर्तमान को मुग्ध इतिहास की नजर से देखने के पक्षधर कभी नहीं लगे। उनके पास भौगोलिक वृतांत अपने स्वरूप में पूर्णता को प्राप्त होते नजर आते हैं। चित्रण इतना सजीव कि उपमाएं और उपमान दृश्यचित्र की तरह उभर आते हैं। उनके लेखन में ठोस यथार्थ और गतिशील समय की गूंज है। भाषा इतनी सरल कि कोई भी बहता चला जाए।

कार्यक्रम में साहित्यकार एवं निदेशक शहरी विकास ललित मोहन रयाल और सूचना महानिदेशक रणवीर चौहान ने भी कोतवाल का हुक्का पर विचार साझा किए। परिचर्चा में कथाकर सुभाष पंत, नवीन नैथानी, डीएन भट्टकोटी, गंभीर पालनी, डॉ सविता मोहन, गीता गैरोला, राजेश सकलानी, दिनेश जोशी, भुवन चंद कुनियाल, शंखधर दुबे, देवेश जोशी, जितेंद्र भारती, राजेश पाल, राकेश जुगरान, रुचिता तिवारी, प्रिय आशुतोष, विनोद मुसान, सतेंद्र डंडरियाल, अरविंद शेखर, लक्ष्मी प्रसाद बडोनी आदि मौजूद रहे।

संवाद कार्यक्रम का संचालन नितिन उपाध्याय ने किया। समापन पर काव्यांश प्रकाशन की ओर से प्रबोध उनियाल ने अतिथियों का आभार जताया।

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