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Rishiksh: ‘स्थानीय’, ‘बाहरी’ और ‘मिथक’, किसे मानेगा ‘लोकमत’

• धनेश कोठारी

Rishikesh Assembly Election 2022: चुनावों में ‘मिथकों’ पर भी खासा विश्वास किया जाता है। उत्तराखंड के चुनावी इतिहास से इस बात को साबित करने की कोशिशें हमेशा होती हैं। लोक में प्रचलित है, कि गंगोत्री और बदरीनाथ में जिस पार्टी के प्रत्याशी की जीत होती है, सरकार भी उसी दल की बनती है। ठीक इसी तरह ऋषिकेश विधानसभा से भी एक ‘मिथक’ जुड़ा रहा है, कि यहां ‘बाहरी’ कैंडीडेट को ही जीत मिलती है। क्या इसबार भी यह ‘मिथक’ कायम रहेगा?

ऋषिकेश असेंबली में 2022 के चुनाव में 2 निर्दलियों समेत कुल 12 प्रत्याशी मैदान में हैं। जिनमें भाजपा से प्रेमचंद अग्रवाल, कांग्रेस से जयेंद्र रमोला, आम आदमी पार्टी से राजे सिंह नेगी, उत्तराखंड जनएकता पार्टी से कनक धनाई, उत्तराखंड क्रांति दल से मोहन सिंह असवाल, उत्तराखंड रक्षा मोर्चा से बबली देवी, समाजवादी पार्टी से कदम सिंह बालियान, शिरोमणि अकाली दल से जगजीत सिंह, न्याय धर्मसभा से संजय श्रीवास्तव, उत्तराखंड जनता पार्टी से अनूप सिंह राणा, निर्दलीय उषा रावत और संदीप बस्नेत का नाम शामिल है।

विधानसभा चुनाव के लिए नामांकित प्रत्याशियों के हलफनामों में दिए एड्रेस के हिसाब से प्रेमचंद अग्रवाल, जयेंद्र रमोला, उषा रावत, जगजीत सिंह का निवास नगर निगम क्षेत्र में हैं। जबकि मोहन सिंह असवाल का साहबनगर छिद्दरवाला, कनक धनाई और निर्दलीय संदीप बस्नेत का रायवाला, राजे सिंह नेगी, संजय श्रीवास्तव और बबली देवी का हरिपुरकलां और कदम सिंह बालियान का आईडीपीएल में निवास है। यह सभी विधानसभा क्षेत्र में हैं। जबकि अनूप सिंह राणा का स्थायी पता हर्रावाला देहरादून है।

प्रत्याशियों के एड्रेस के हिसाब से सिर्फ अनूप सिंह राणा ही इस सीट पर ‘बाहरी’ नजर आते हैं। लेकिन उन्हें इस ‘मिथक’ से कोई नहीं जोड़ना चाहेगा। दूसरी बात, इस बार किसी भी पार्टी ने यहां कोई ‘पैराशूट’ कैंडिडेट भी नहीं उतारा है।

सियासी प्रतिद्वंदिता के लिहाज से से पहले शूरवीर सिंह सजवाण और अब तक प्रेमचंद अग्रवाल को ही ‘बाहरी’ ठहराया गया। जबकि उनके स्थायी आवास भी विधानसभा की परिधि में बन चुके हैं। शूरवीर सिंह सजवाण इसबार चुनाव मैदान में नहीं हैं। ऐसे में ‘स्थानीयता’ बनाम ‘बाहरी’ का मसला कितना सटीक है? यह बहस का मुद्दा हो सकता है।

पिछले चुनावों के ‘पैराशूट’ कैंडिडेट (जिन्हें बाहरी बताया गया) को देखें, तो सन् 2002 में राज्य के पहले विस चुनाव में कांग्रेस ने स्थानीय व्यक्ति सुनील गुलाटी का नाम एनाउंस किया। लेकिन ऐन नामांकन के दिन देवप्रयाग के पूर्व विधायक शूरवीर सिंह सजवाण को ‘पैराशूट’ से लांच कर दिया। भाजपा ने स्थानीय संदीप गुप्ता पर दांव खेला। मगर जीत शूरवीर के पक्ष में आई।

वर्ष 2007 में भाजपा ने भी पैराशूट कैंडिडेट मैदान में उतारा। डोईवाला के प्रेमचंद अग्रवाल को टिकट दिया गया। कांग्रेस ने शूरवीर सिंह सजवाण को ही रिपीट किया। लेकिन इस चुनाव में प्रेमचंद ने बाजी मारी। 2012 में भाजपा ने प्रेमचंद अग्रवाल को रिपीट किया, तो कांग्रेस ने स्थानीय युवा राजपाल खरोला पर दांव लगाया। तब भी जीत का सेहरा प्रेमचंद के सिर बंधा। चौथे चुनाव 2017 में दोनों ही प्रत्याशी फिर से आमने सामने आए, लेकिन प्रेमचंद तीसरी बार भी काबयाब रहे।

इस दफे भाजपा ने जहां प्रेमचंद को चौथा चांस दिया है, तो कांग्रेस ने युवा चेहरे जयेंद्र रमोला को मैदान में उतारा है। जबकि आप से राजे सिंह नेगी और उजपा से कनक धनाई प्रत्याशी हैं। बावजूद कुछ हद तक ही सही ‘स्थानीयता’ बनाम ‘बाहरी’ का मुद्दे को फिर से चर्चा में लाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। जिसके केंद्र में हरबार की तरह ‘प्रेमचंद’ ही रखे जा रहे हैं। जबकि वह दशक भर पहले यहां अपना स्थायी ‘ठिकाना’ बना चुके हैं।

लिहाजा, किसे स्थानीय और किसे बाहरी कहा जाए? क्या मौजूदा चुनाव में ‘मिथक’ यथावत रहेगा? हां, तो फिर लोक-मत किस पक्ष में जाएगा, ‘स्थानीयता’ अथवा ‘बाहरी’…?

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