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गढ़वाली भाषा के मानकीकरण में एकरूपता जरूरीः नवानी

• धाद संस्था द्वारा दून लाइब्रेरी में आयोजित हुई एक दिवसीय कार्यशाला

Dehradun : धाद मातृभाषा एकांश की ओर से दून लाइब्रेरी में अखिल भारतीय स्तर पर गढ़वाळि भाषा क्रियारूपों पर कार्यशाला और विमर्श का आयोजन किया गया। इस अवसर पर धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी बताया कि संगठन की शुरुआत ही भाषा आंदोलन से हुई। कहा कि आज जो लोग भाषा को बचाने का कार्य कर रहे हैं वही वास्तविक भाषा के सिपाही हैं।

उन्होंने भाषा के मानकीकरण पर कहा कि भाषा सार्वजनिक रूप से सर्वमान्य होने चाहिए। इसमें एकरुपता होनी चाहिए। गढ़वाली भाषा को आठवीं सूची में शामिल करने की यही शर्त है। भारतीय संस्कृति के विज्ञ जॉर्ज ग्रिर्यसन को याद करते उन्होंने कहा सौ वर्ष पहले भी मानकीकरण की बात की गई थी। किंतु समय रहते इस पर कार्य नहीं किया गया इसलिए भाषा की स्थिति आज भी वैसे ही बनी हुई है। कहा कि मानकीकरण के पश्चात भाषा को सहजता से समझ पाएंगे। भाषा साहित्य अकादमी तक पहुंचेगी। इसके लिए व्याकरण शाब्दिक और वर्तनी पर भी बात होनी चाहिए। ताकि देश विदेश के लोग भी इसे आसानी से पढ़ पाएं।

विशिष्ट अतिथि डॉ. जे.पी. नवानी ने कहा, किसी भी तरह अपनी भाषा को अगली पीढ़ी तक स्थानांतरित किया जाए। साहित्यकार एवं फिल्मकार चंद्रवीर गायत्री ने अपनी बोली भाषा को महत्व देने की अपील की। साहित्यकार नंदकिशोर हटवाल ने कहा कि गढ़वाली भाषा की वर्णमाला संक्षिप्त होनी चाहिए, इसमें बहुत ज्यादा चिह्नों की आवश्यकता नहीं। कई वर्णों की आवश्यकता नहीं। तीन चार प्रारूपों को स्वीकार कर सकते हैं। साथ ही भाषा के नए तौर तरीकों को अपनाने और पुरानी अवधारणा को त्यागने की आवश्यकता है।

पौड़ी से आए साहित्यकार महेशानंद ने कहा गढ़वाली भाषा में अथाह शब्द भंडार है अधिक से अधिक लोग जिन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, उसे ग्रहण करना चाहिए इसका स्वरूप सरलतम होना चाहिए। संदीप रावत ने कहा कि हमें अपने हठ छोड़कर मानकीकरण पर कार्य करना होगा। ताकि आम लोगों तक बात पहुंचे।

शिवदयाल शैलज ने कहा कि भाषा को अपने स्वरूप में लाने के लिए मानकीकरण आवश्यक है। व्याकरण के अनुसार लिखी और बोली जानी चाहिए। वरिष्ठ साहित्यकार रमाकांत बेंजवाल ने साहित्य लेखन को लेकर सारगर्भित वक्तव्य और क्रियारूपों की विस्तृत जानकारी दी। दिनेश ध्यानी ने बताया मानकीकरण से हमारी भाषाओं का अनुवाद भी होगा। भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल होने के लिए कोई मानदंड नहीं है। इस तरह के कार्यक्रम लगातार होने चाहिए।

देवेश जोशी ने कहां अपनी भाषा बोलने के लिए सब आजाद हैं। वैज्ञानिक युग में यदि किसी रूप की शुरुआत की जाए तो मानकीकरण की बहुत जरूरत है। कार्यशाला में संयोजक शांति प्रकाश जिज्ञासु ने स्वागत संबोधन दिया।

मौके पर उत्तराखंड के सभी जिलों का प्रतिनिधित्व रहा। रुद्रप्रयाग से ओमप्रकाश सेमवाल, टिहरी से डॉ. वीरेंद्र बर्त्वाल, उत्तरकाशी से ओम बधानी, हरिद्वार से टीआर शर्मा, देहरादून से तोताराम ढौंढियाल, मदन मोहन डुकलान, बीना कंडारी, लक्ष्मण सिंह रावत, प्रेमलता सजवान, प्रिया देवली, शांति बिंजोला, कुलानंद घंसला, सुमित्रा जुगलान आदि मौजूद रहे।

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