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देवर गांव में आज भी जीवंत है ‘पांडव नृत्य’ की परंपरा

पांच वर्ष बाद इसबार 20 नवम्बर से शुरू होगा महीनेभर का अनुष्ठान

Lok Sanskriti Uttarakhand: केदारघाटी के सैन्य बहुल देवर गांव में लोकमंगल और लोकरंजन की भावना से जुड़े पारंपरिक पांडव नृत्य अनुष्ठान का 20 नवंबर को विधिवत शुभारंभ होगा। करीब डेढ़ दशक पूर्व से स्थापित परंपरा के अनुसासर यह अनुष्ठान एक महीने तक चलेगा। इसके लिए कई लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं।

लगभगत एक महीने तक चलने वाले समारोह को लेकर ग्राम प्रधान लक्ष्मी देवी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में पांडव नृत्य के सफल आयोजन के लिए ग्रामीणों को जिम्मेदारियां सौंपी गई। इस समय पंचांग पूजा के साथ दिन और मुहूर्त तय किया गया। जिसके बाद ग्रामीणों ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं।

आयोजन समिति के अध्यक्ष और लोक संस्कृति के मर्मज्ञ दयाल सिंह चौहान ने यह जानकारी दी। बताया कि चंद्रपाल सिंह चौहान को संरक्षक, गंगा सिंह चौहान को संयोजक, विनोद नौटियाल को कार्यक्रम संचालक, जगदीश चौहान को कोषाध्यक्ष का दायित्व दिया गया है। जबकि उदय सिंह चौहान को सह संचालक, लोकेश चौहान को सचिव, प्रेमसिंह चौहान को उपाध्यक्ष, गीता देवी को सह सचिव और विजयपाल सिंह चौहान को विशेष सलाहकार बनाया गया है।

बता दें कि लगभग ढाई सौं परिवारों वाले देवर गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का अग्रदूत माना जाता है। एक जमाने में गुप्तकाशी की ग्यारह गांव रामलीला और देवर का पांडव नृत्य क्षेत्र के सांस्कृतिक वैभव की पहचान थे। दुनियावी आपाधापी के दौर में भी गांववासियों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखा है।

यह भी कि पांडव नृत्य के दौरान महाभारत के सभी महत्वपूर्ण प्रसंगों का लोकमंच पर प्रस्तुतिकरण की शताब्दी पुरानी परंपरा है। चक्रव्यूह, कमलव्यूह, ऐरावत हाथी, गैंडा प्रसंगों का जीवंत अभिनय देखने लोग दूर दूर से देवर गांव में आते रहे हैं। इन प्रसंगों के अभिनय और प्रस्तुतिकरण में देवर गांव के कलावंतों की महारत मानी जाती रही है। कई बार कुछ दूसरे गांवों से भी लोक मार्गदर्शन लेने देवर आते रहे हैं। केदारघाटी में इसी तरह की विशेषज्ञता कंडारा गांव के कलावंतों की मानी जाती है।

बहरहाल पांच साल बाद देवर गांव में हो रहे इस आयोजन के प्रति क्षेत्र के लोगों में जिज्ञासा भी बनी हुई है। 20 नवंबर को ध्वज पूजन के साथ अनुष्ठान का शुभारंभ हो जाएगा।

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