
टिहरी बांध (Tehri Dam) का विचार आजादी के महज दो साल बाद ही तत्कालीन सरकार के मन में कौंध गया था। जिसका परिणाम है कि टिहरी बांध परियोजना (Tehri Dam Project) से आज 1000 मेगावाट विद्युत उत्पादन के अलावा सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह संभव हुआ भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय तकनीकी और आर्थिक समझौते के बल पर।
सन् 1949 में टिहरी बांध परियोजना की कल्पना की गई थी। जिसे वर्ष 1986 में केंद्र और यूपी सरकार के संयुक्त उपक्रम के रूप में मान्यता मिली, और 1988 में टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड (पूर्व में टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) का गठन किया गया। सन् 1986 में भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय तकनीकी एवं आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
इसबीच बांध की सुरक्षा, गंगा की अविरल जलधारा और पर्यावरणीय दुष्प्रभावों की आशंका को लेकर विवाद उभरे। जिनके समाधान के लिए कई सरकारी विभागों, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के पैनल गठित किए गए। उनकी सिफारिशों के बाद ही 1990 में अपस्ट्रीम कॉफ़र डैम के निर्माण और मुख्य बांध का निर्माण शुरू हुआ।
भारतीय और रूसी विशेषज्ञों द्वारा भूकंपीय दृष्टि से बांध की सुरक्षा की समीक्षा की गई। इसके बाद ही केंद्र ने वर्ष 1994 में परियोजना के निर्माण पर मुहर लगाई। धरातल पर बांध का निर्माण वर्ष 1995 में विधिवत शुरू हुआ। डैम साइट्स पर निर्माण कार्य जनविरोध के बीच जारी रहे। इसबीच एक बड़ी आबादी अपने पुश्तैनी जमीनों से विस्थापित भी हुई। और अंततः 1949 की कल्पना को 2005 में पूरा कर लिया गया।
हाईकोर्ट ने जब जलाशय को भरने के लिए अंतिम डायवर्जन टी-2 सुरंग को बंद करने की अनुमति दी, तब इसीवर्ष अक्टूबर महीने में परियोजना की कमीशनिंग का कार्य शुरू हुआ। प्रत्येक पावर हाउस की चारों यूनिटों की कमीशनिंग पूरी हुई, और फिर वह दिन भी आया जब जुलाई 2007 में टिहरी बांध ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया था।