उत्तराखंडसियासत

Politics: ‘बुनियाद’ रखने के वक्त ही ‘गुटबाजी’ की सेंध

ऋषिकेश में भी संभावित दावेदारों की 'अपनी ढपली-अपना राग'

शिखर हिमालय डेस्क
उत्तराखंड (Uttarakhand) की राजनीति (Politics) में अब तक गुटबाजी (groupism) के किस्से भारतीय जनता पार्टी (BJP), कांग्रेस (Congress)और उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) में ही सुनाई देते थे। अब जब आम आदमी पार्टी (Aap) को उत्तराखंड आए जुम्मा-जुम्मा् कुछ ही महीने हुए हैं तो ऐसी आवाजें उसके भीतर से भी आने लगी हैं। ऐसे में जिस सपने के साथ ‘आप’ ने उत्तराखंड में कदम रखा है, धड़ेबंदी क्या, वह ख्वाब पूरा होने देगी। ऐसा ही कुछ ऋषिकेश विधानसभा सीट पर भी नज़र आ रहा है। आप से अब एक नहीं बल्कि दो दावेदारों के आमने-सामने आने की जमीन तैयार हो रही है।

राज्यर गठन के 20 वर्षों के सियासी सफ़र में भाजपा और कांग्रेस भीतरघात का दंश झेलते रहे हैं। ऋषिकेश विधानसभा में कांग्रेस ने इस वक्फ़े में गुटबाजी का सबसे ज़्यादा तीन बार चुनाव हारने के रूप में नुकसान उठाया। इसबार जब भाजपा के भीतर खलबली दिख रही है, तब जहां कांग्रेस ‘छींका टूटने’ की आस बांधे है वहीं तीसरे विकल्पे के तौर पर उभर रही आम आदमी पार्टी के मन में भी ‘लड्डू’ फूट रहे हैं। मगर, सपना पूरा होने से पहले बिखरता नज़र भी आ रहा है

महज चार महीने पहले ऋषिकेश विस में आम आदमी पार्टी की सक्रियता को देखें तो गिनती के लोगों से यह शुरू हुई। धीरे-धीरे कारवां आगे बढ़ा और अब कह सकते हैं कि आप ऋषिकेश की सियासत में दस्तेक देने की तरफ़ बढ़ रही है। इस बढ़ते जनाधार से पाटी में राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का बढ़ना भी स्वाभाविक ही है।

सामाजिक क्षेत्र में वर्षों से सक्रिय डॉ. राजे सिंह नेगी ने आप में खुद के लिए जगह बनाई और उसी आधार उन्होंने पार्टी फोरम में ऋषिकेश विधानसभा सीट से अपनी दावेदारी भी जताई। यहां तक कि खुद के सामाजिक आधार को साबित करने के लिए जमीन पर लगातार जूझ भी रहे हैं। मगर अब ऐसा लग रहा है कि पार्टी के भीतर उनके लिए भी रास्ता आसान नहीं है। कारण, इनदिनों एक अन्य पदाधिकारी के पक्ष में कुछ कार्यकर्ता डोर टू डोर न सिर्फ प्रचार सामग्री बांट रहे हैं, बल्कि आम लोगों से चुनाव में ‘ख्याल’ रखने की अपील भी कर रहे हैं।

कमोबेश ऐसे ही किस्से कुछ दिन पहले कुमाऊं मंडल की विधानसभाओं में भी सुनाई दिए। जिनके आगे भी जारी रहने की आशंका है। लिहाजा, आम आदमी पार्टी ‘बुनियाद’ रखने के वक्ता से सामने आ रहे ऐसे हालातों को चुनाव के दिन तक कैसे मैनेज करेगी और क्या यह उसके लिए अच्छा संकेत होगा, अभी से ये समझना मुश्किल भी नहीं है।

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