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लेखक देवेश जोशी की सरदार बहादुर ‘कैप्टन धूम सिंह चौहान’ पर आई सद्य प्रकाशित रचना हाथ में आई तो अनायास ही चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ की याद हो आई।
हालांकि इस रचना का मकसद कथा-कहानी उकेरने के बजाए महायुद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अनसंग हीरोज के सिलसिलेवार दस्तावेजीकरण की ओर दिखाई पड़ता है। महायुद्धों में मिस्र, गैलिपोली, मेसोपोटामिया, भूमध्यसागरीय और मध्यपूर्व के युद्ध क्षेत्रों में अनेकानेक मोर्चों पर ब्रिटिश राज की ओर से भारतीय सैनिकों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। निर्णायक भीषण लड़ाईयाँ लड़ीं। सर्वोच्च बलिदान दिए। सर्वोच्च वीरता सम्मान हासिल किए।
पूर्व की रचनाओं में भक्तदर्शन की चर्चित रचना ‘गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ’ में विक्टोरिया क्रॉस दरबान सिंह, गब्बर सिंह नेगी और राइफलमैन जसवंत सिंह पर विस्तार से चर्चा हुई। इसके अतिरिक्त आईएनए के देव सिंह दानू और कर्नल पितृशरण रतूड़ी का भी यत्र तत्र विवरण मिलता है। सैन्य परंपरा में गढ़वाल का स्वर्णिम इतिहास रहा है। यहाँ पर लेखक का सजग प्रयास रहा है कि इन वार हीरोज का सिलसिलेवार ब्यौरा संरक्षित किया जाता तो कितना अच्छा होता।
धूम सिंह चौहान प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस में बहादुरी से लड़े। दो बार घायल हुए। तीसरे अफगान युद्ध में जमरूद के किले में तैनात रहे। कालांतर में वे बर्तानिया सम्राट जॉर्ज पंचम के ऑर्डरली अफसर और संयुक्त प्रांत के गवर्नर के एडीसी भी रहे। सेवानिवृत्ति के बाद भी सामाजिक जीवन में उनकी बराबर सक्रियता बनी रही। ब्यौरों के लिए लेखक ने उनके सर्विस रिकॉर्ड्स और सनदों का सहारा लिया है, जिससे विवरणों की प्रमाणिकता असंदिग्ध हो जाती है।
– ललित मोहन रयाल