साइबर ठगी के बढ़ते मामलों में एक छोटी सी लापरवाही आपकी जमा पूंजी को लूटा सकती है। ऐसे में लोगों को डिजिटल लेनेदेन के वक्त अधिक सावधानियां बरतने की जरूरत है।
डिजिटल सेंधमारी में फिशिंग (phishing) और रैंसवेयर (ransomware) दो तरीके हैं। फिशिंग में बैंकों के क्रेडिट कार्ड आदि की जानकारी चुराकर साइबर ठग रकम उड़ा देते हैं। जबकि रैंसमवेयर में लोगों और कंपनियों के कंप्यूटर नेटवर्क को हैक कर बदले में फिरौती मांगी जाती है।
बताते हैं कि बीते वर्षों की तुलना में फिशिंग में 11 और रैंसमवेयर में छह प्रतिशत का इजाफा हुआ है। साइबर सेंधमारों के बाकायदा गिरोह सक्रिय हैं। साइबर फर्जीवाड़ों का लिंक केवल आईटी या इंटरनेट से नहीं जुड़े हैं बल्कि लॉटरी, किसी सामान की खरीद पर इनाम का लालच देकर, पुराने मोबाइल फोन की खरीद-फरोख्त, फर्जी तरीके से सिम हासिल करना, फर्जी आधार कार्ड बनवा लेने की गतिविधियों से भी हैं।
बैंकिंग के आधुनिक डिजिटल सिस्टम के चलते सुविधाओं के साथ ही यह लोगों के लिए मुश्किलों का सबब बनता जा रहा है। कभी नेट बैंकिंग का पासवर्ड, कभी एटीएम पिन चुराकर, कभी एटीएम कार्ड की क्लोनिंग से ग्राहकों के खातों से जमा पूंजी निकाल ली जाती है।
हाल फिलहाल आलम ये है कि साइबर ठगी (cyber fraud) का शिकार होने वाले शख्स को खुद ही बैंकों के चक्कर लगाकर एटीएम की वीडियो फुटेज आदि हासिल करनी पड़ती है। ऐसे में अगर साइबर अपराधियों पर सख्त कार्रवाईयां नहीं हुई तो यह समस्या और भी विकराल हो सकती है।
इसके लिए कानूनी उपाय और जागरूकता ही बचाव का साधन है। बैंकिंग संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे अपने ग्राहकों को साइबर जालसाजों से बचाने के सभी उपायों की जानकारी अपने ग्राहकों को समय-समय पर देते रहें। जबकि सरकार को कानून में सजा के सख्त प्रावधान और हर शिकायत पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए।