साहित्यहिन्दी

लिंगुड़ बेचते लड़कों!

(हिन्दी कविता)

• अनिल कार्की

ओ लिंगुड़ बेचते लड़कों
हरे रहना
थोड़ा नरम भी
आदम फर्न की कोपलों सा

जब तुम दुनिया के बारे में जानोगे
तुम्हें फर्न से प्यार करने वाले
प्रेम और द्रोह के कवि
पाब्लो के बारे में पता चलेगा

तुम धड़कोगे उस वक्त
तब मेरे बारे में सोचना
मेरी ईजा भी तुम्हारी ईजा की तरह
एक घस्यारिन की बेटी थी

हम सब दुरूह पहाड़ों पर
लिंगुड़ की तरह फैले
सबसे आदम घास है

2

जीभ स्वाद के स्वर्ग की
मोहक गुलाबी सर्पिणी है
विकट हमारे इच्छाओं सी

फर्न धरती की आदम घास
हरी हमारे भावनाओं सी

सब कुछ पा लेने के लिए न सही
कुछ खो लेने के लिए भी
उग आना कभी
चट्टानों के सामने

3
फर्न का पत्ता हाथ मे लिए
प्रेमिका के उल्टी हथेली में
जरूर लगाना
चपाक से सफेद चमकन छाप

फर्न के सिणके
से बनाना नाक की लौंग
कान की बाली

दुनियादारी में उलझने से पहले
प्रेम में जरूर पड़ना
ओ लिंगुड़ बेचते लड़कों

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