देहरादून ( वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शास्त्री की रिपोर्ट )। उत्तराखंड सरकार के बीती दस जनवरी के फैसले के विरुद्ध चमोली जिला पंचायत की अध्यक्ष रजनी भंडारी को नैनीताल हाईकोर्ट से दूसरी बार अभयदान दिया है। इसी मामले में हाईकोर्ट ने वर्ष 2023 में भी रजनी भंडारी को राहत दी थी। तब भी सरकार ने उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष के पद से बर्खास्त किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी। रजनी भंडारी को दूसरी बार भी नंदा राजजात के कार्यों में टेंडर प्रक्रिया का उल्लंघन करने के आरोप में पद से हटाया गया था।
बताते चलें, रजनी भंडारी बदरीनाथ सीट से कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह भंडारी की पत्नी हैं। राज्य सरकार ने जब रजनी भंडारी को पद से हटाया तो दोनों बार जिला पंचायत अध्यक्ष की जिम्मेदारी उपाध्यक्ष लक्ष्मण रावत को दी गई। यानी लक्ष्मण रावत दो बार इस पद पर आसीन हुए। यह अलग बात है कि दोनों बार वे कुछ ही दिन के मेहमान रह पाए।
अब रजनी भंडारी फिर बहाल हो गई हैं तो उनकी उम्मीदों पर स्वाभाविक रूप से पानी सा फिर गया है। खैर यह कोई मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि प्रदेश सरकार से आखिर यह चूक कैसे हो गई कि उसे एक ही मामले में दूसरी बार अदालत में मुंह की खानी पड़ी। इस तरह की घटनाओं से सरकार के इकबाल पर असर पड़ता है। फजीहत की यह इबारत लम्बे समय तक याद रहती है और जब अगले साल फिर पंचायत चुनाव होंगे तो तब भी लोगों के जेहन में इस तरह की बातें मौजूद रहती हैं तो नुकसान किसका होगा, अंदाजा लगा सकते हैं।
इस मामले को सवाल है कि आपने रेत के ढेर से मुठ्ठी भर रेत हाथ में ली, मुठ्ठी को एक बार, दो बार जितना आप कसते चले जायेंगे, अंत में आपकी मुठ्ठी में कितनी रेत शेष रह पाएगी? रजनी भंडारी के मामले को इस उदाहरण से समझा जा सकता है।
जिद थी कि रजनी भंडारी को पद से हटाया जाए। एक बार उस कोशिश में अदालत ने फैसले को पलटा, दूसरी बार ठीक उसी तरह की कोशिश हुई तो माना जा रहा था कि शायद पहली बार अदालत में ठीक से पैरवी न हुई हो, तथ्यों को ठीक से प्रस्तुत नहीं किया गया हो या फिर कोई नया तथ्य सामने आया हो लेकिन हाईकोर्ट में जब पहले की तरह मामला औंधे मुंह गिरा यानी टिक नहीं पाया तो जिद किसकी पूरी हुई?
उधर रजनी भंडारी की जिद पद पर काबिज रहने की थी जबकि सरकार की जिद उन्हें पद से हटाए जाने की थी तो आखिर फजीहत किसकी हुई? आम तौर पर माना जाता है कि सरकार जो भी निर्णय लेती है, वह ठोक बजा कर लेती है। इसके लिए सरकार के पर बकायदा एक न्याय विभाग होता है जो अक्सर सरकार को परामर्श देता है कि न्यायिक दृष्टि से मामला कितना ठोस है और अदालत में टिक पाएगा अथवा नहीं, लेकिन इस मामले में सरकार की किरकिरी को देखते हुए लगता है कि केवल जिद पूरी करने की हसरत के चलते निर्णय की पुनरावृति हुई और नतीजा सामने है।
कांग्रेस विधायक राजेंद्र भंडारी तो खुलेआम आरोप लगा ही रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में उन्हें हराने के कारण इस तरह का पीठ पर वार किया गया, तभी तो वे सामने से वार करने की चुनौती दे रहे हैं। फिलहाल मामला खत्म जरूर हो गया है लेकिन इसकी गूंज देर तक सुनाई देगी, इसमें संदेह नहीं है।