ग्रामीण महिलाओं की बढ़ी आमदनी, मिला आत्म विश्वास
गाय के गोबर से चमराडा की महिलाएं बना रही धूपबत्ती, दीपक और साम्ब्रानी कप

पौड़ी। जिले के विकासखंड खिर्सू के ग्राम चमराडा की महिलाओं ने गाय के गोबर से आजीविका की नयी राह खोज निकाली है। ग्रामोत्थान परियोजना के अंतर्गत भूमि स्वायत्त सहकारिता चमराडा द्वारा स्थापित गाय के गोबर आधारित धूपबत्ती एवं अन्य उत्पाद निर्माण इकाई अब ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार और आय का स्थायी स्रोत बन चुकी है।
इस सहकारिता में वर्तमान में 64 समूह, 9 ग्राम संगठन और कुल 385 सदस्य सक्रिय हैं। पौड़ी मुख्यालय से लगभग 30 किमी और श्रीनगर से 15 किमी की दूरी पर स्थित यह इकाई सीमित कृषि भूमि वाले क्षेत्र में रोजगार का नया जरिया बनी है। यहां अधिकांश लोग डेयरी उत्पादन से जुड़े हैं, जिससे गोबर की पर्याप्त उपलब्धता रहती है।यही इस उद्योग की सबसे बड़ी ताकत साबित हुई है।
भूमि स्वायत्त सहकारिता समूह के तहत महिलाओं से 20 रुपये प्रति किलो की दर से सूखा गोबर खरीदा जा रहा है। वहीं, इकाई में कार्यरत महिलाओं को 300 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिल रही है, जिससे उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है।
ग्रामोत्थान परियोजना के तहत मुख्यमंत्री उद्यमशाला योजना एवं ग्रामोत्थान योजनाओं के समन्वय से यह यूनिट स्थापित की गई है। वर्तमान में इस इकाई में साम्ब्रानी कप, धूपबत्ती और दीपक जैसे उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं, जिनकी बाजार में अच्छी मांग है।
आगामी दीपावली और नवरात्रि पर्वों के अवसर पर सहकारिता समूह ने 8 से 10 लाख रुपये के व्यवसाय का लक्ष्य रखा है। स्थानीय बाजारों में इन पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए यह यूनिट भविष्य में पूरे जनपद के लिए एक मॉडल प्रोजेक्ट के रूप में उभर सकती है।
सहकारिता से जुड़ी महिला सदस्य गीता देवी का कहना है कि “पहले गांव में गोबर बेकार जाता था, अब यही हमारी रोज़ी-रोटी का साधन बन गया है। घर के पास ही रोजगार मिलना हमारे लिए बहुत बड़ी राहत है।” इकाई प्रबंधक शकुंतला नेगी बताती हैं कि इस यूनिट ने न केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि गांव में स्वच्छता और गोबर के उपयोग को लेकर भी नई सोच दी है।
उन्होंने कहा कि गाय के गोबर से बने ये पर्यावरण अनुकूल उत्पाद स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे रहे हैं। ग्रामोत्थान परियोजना अधिकारी कुलदीप बिष्ट ने बताया कि ग्राम चमराडा में स्थापित यह यूनिट ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की दिशा में एक सफल प्रयास है। उनका कहना है कि उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को स्थानीय संसाधनों के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना है।
उन्होंने बताया कि आने वाले समय में यूनिट का विस्तार कर उत्पादों की गुणवत्ता और पैकेजिंग को और बेहतर बनाया जाएगा, ताकि सहकारिता को स्थायी बाजार और ब्रांड पहचान मिल सके। चमराडा की महिलाएं अब न सिर्फ आत्मनिर्भरता की मिसाल बन रही हैं, बल्कि स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा भी दे रही हैं।