उत्तराखंडलोकसमाज

Dehradun: ‘धाद’ का नए वर्ष का कैलेंडर लोकार्पित

पहाड़ी अनाज दिनचर्या में शामिल करने और 1000 फंची परिवार बनाने का संकल्प

देहरादून। सामाजिक संस्था ‘धाद’ की ओर से नववर्ष 2023 का कैलेंडर जारी किया गया। इस दौरान संस्था ने पहाड़ के अन्न उत्पादन को सबके जीवन में शामिल करने का संकल्प भी लिया।

रविवार को धाद स्मृति वन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कल्यो की संयोजिका मंजू काला, कोना कक्षा का के संयोजक गणेश चंद्र उनियाल, स्मृतिवंन के संयोजक वीरेंदर खंडूरी, पुनरुत्थान के संयोजक विजय जुयाल, व्यास शिव प्रसाद ग्वाड़ी, डॉ’ जेपी नवानि, डॉ मयंक डबराल और लोकेश नवानी ने कैलेंडर का लोकार्पण किया।

रविंद्र नेगी द्वारा डिजाइन कैलेंडर विश्व मिलेट वर्ष के पक्ष में पहाड़ के अन्न उत्पादन की पैरवी, धाद के कोना कक्षा का की शिक्षा की पहल, हरेला के साथ देश विदेश के आयोजन और पुनरुत्थान के अंतर्गत आपदा प्रभवित बच्चों की शिक्षा के सामाजिक प्रयासों पर फोकस किया गया है। इस दौरान वर्ल्ड मिलेट ईयर 2023 का स्वागत झंगोरे की खीर, कोदे की रोटी, खुश्का (मीठा भात), झोली, गैथ का फ़ाणू, धबड़ी और पहाड़ी चाय के साथ किया गया।

धाद के केन्द्रिय सचिव तन्मय ने कहा कि धाद का लक्ष्य एक संस्था बनना भर नहीं बल्कि एक बेहतर समाज की नींव बनना है जिसमे अपनी विद्रूपताओं और संकटों से लड़ने की स्वाभाविक शक्ति हो। धाद के सभी कार्यक्रम समाज के साथ उसकी वास्तविक भागीदारी के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे है। इस वर्ष जब यूनेस्को ने विश्व मिलेट वर्ष घोषित किया है, तब धाद ने व्यापक समाज को पहाड़ के मिलेटस के साथ जोड़ने के लिए हमने 1000 फंची परिवारों को बनाने का लक्ष्य रखा है। जो अपने मासिक भोजन में पहाड़ी अन्न उत्पादन को शामिल करने की पहल करेंगे।

मंजू काला ने कहा कि धाद के निरन्तर प्रयासों के चलते पहाड़ के भोजन को सामाजिक और शासकीय स्वीकार्यता मिलती दिखाई दे रही है। जिसका प्रथम पड़ाव 2015 का घी संग्रान्द का शासकीय आयोजन था। लेकिन इसको वास्तविक आधार तब मिलेगा जब प्रदेश के बाहर देश दुनिया के भोजन का भी हिस्सा बनेगा। इसके लिए नए प्रयोगों की जरुरत है। कल्यो फ़ूड फेस्टिवल के साथ धाद इस प्रयोग को निरंतर कर रही है और उसे व्यापक सामाजिक स्वीकार्यता भी मिल रही है

गणेश चंद्र उनियाल ने बताया कि सार्वजनिक शिक्षा में समाज की रचनात्मक सहभागिता के कार्यक्रम कोना कक्षा का ने बहुत कम समय में प्रदेश के दूरस्थ स्कूलों में समाज की सहभागिता के साथ देश की श्रेष्ठ पुस्तकों के कोने स्थापित करने में सफलता पायी है। उत्तराखंड के 600 से अधिक स्कूलों में हम समाज को जोड़ने में सफल रहे है। जिनके साथ हम फूलदेई, हरेला जैसे स्थानीय संदर्भ भी पहुंचा रहे हैं।

वीरेंदर खंडूरी ने कहा की हरेला का संकल्प उसके विभिन्न अध्याय के साथ निरंतर आगे बढ़ रहा है। दो वर्ष पूर्व धाद की पहल पर विकसित किया जा रहा स्मृतिवन आज सामाजिक सहभागिता का श्रेष्ठ नमूना है, जहां लोगों ने अपने योगदान से एक वन विकसित किया है और उसके साथ प्रदेश की विरासत को भी संजोया है।

विजय जुयाल ने बताया कि आपदा प्रभावित छात्रों की शिक्षा में सहयोग का कार्यक्रम केदारनाथ आपदा के पश्चात प्रारम्भ हुआ था जो अनवरत जारी है। पूर्णतः सामजिक सहयोग से चलाया जा रहा यह कार्यक्रम संकट में सामाजिक सहयोग की एक मिसाल है। इसमे 45 लाख से अधिक की राशि के साथ 200 से अधिक आपदा प्रभावित बच्चे शिक्षा ग्रहण कर चुके है।

धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने कहा कि तीन दशकों से उत्तराखंड के तमाम सामाजिक प्रश्नों पर धाद की यात्रा उसकी सामाजिक विश्वसनीयता हासिल करने और उसे बनाए रखने की मिसाल है। धाद एक नया समाज बना रही है जो सचेत और संवेदनशील है।

कार्यक्रम का संचालन अर्चन ग्वाड़ी ने किया। मौके पर आशा डोभाल, बृजमोहन उनियाल, साकेत रावत, इंदु भूषण सकलानी, सुरेंद्र अमोली, सुशील पुरोहित, मनीषा ममगाईं, संजीव ग्वाड़ी, दीपा, सुशील नैथानी, दयानन्द डोभाल, मनोहर लाल, गौरव शर्मा, महावीर रावत, प्रमोद बहुगुणा, उषा ममगाईं, आशीष पोखरियाल, पुष्पलता ममगाईं, सविता जोशी, बलवंत रावत, शशि डंडरियाल, सिद्धार्थ शर्मा, मेघा, अंकिता सुयाल, योगेश बिष्ट, विनोद, शुभम शर्मा आदि मौजूद थे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!