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Uttarakhand Congress: वर्ष 2017 की प्रचंड हार के बाद 2022 में भी कांग्रेस सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकी। पार्टी ने तब और अब दोनों ही बार हार के कारणों पर मंथन किया, लेकिन आज भी पार्टी के भीतर मंथन का नतीजा फलीभूत होता नहीं दिखता। सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस की हार के कारणों में गुटबाजी को प्रमुख माना जाता है। लेकिन तब भी वह कोई सबक लेने को तैयार नहीं लगती। अब जब पार्टी को नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष का चयन करना है, तो वही गुटबाजी फिर से दो ध्रुवों में बंटी दिख रही है।
साल 2016 में तमाम झंझावतों से अपनी सरकार को बचा ले जाने वाले तत्कालीन सीएम हरीश रावत 2017 आने तक विधानसभा चुनाव में पार्टी की बुरी गत होने से नहीं बचा सके। यहां तक कि रावत ने खुद अपनी दोनों ही सीटों पर हार का सेहरा पहना। कांग्रेस तब 11 सीटों पर सिमट गई। वहीं, 2022 में वह सिर्फ 8 सीटों का इजाफा ही कर सकी। जिसके चलते पार्टी के भीतर लगातार हलचलें जारी हैं। केंद्रीय नेतृत्व में प्रदेश अध्यक्ष से इस्तीफा मांग लिया, तो यह पद तभी से खाली है।
उधर, सदन में नेता प्रतिपक्ष के चयन को लेकर भले ही पार्टी के पर्यवेक्षक और प्रदेश प्रभारी विधायकों से लेकर वरिष्ठ नेताओं से वन टू वन बातचीत कर चुके हैं। बावजूद इसके अभी तक न नेता प्रतिपक्ष चुना गया और न ही पार्टी ने अध्यक्ष पद पर ही किसी को जिम्मेदारी सौंपी है।
दोनों ही पदों के लिए पार्टी के भीतर फिर से रार शुरू हो गई है। डॉ इंदिरा हृदयेश के बाद नेता प्रतिपक्ष रहे चकराता के विधायक प्रीतम सिंह और पूर्व सीएम हरीश रावत फिर से आमने-सामने बताए जा रहे हैं। पार्टी पर अपने वर्चस्व को साधे रखने के लिए लॉबिंग से लेकर बयानों के खेल तक चलने लगे हैं।
यह स्थिति तब है जबकि भाजपा ने मंत्रिमंडल तय करने के बाद विधानसभा अध्यक्ष को भी पीठासीन कर दिया और सरकार ने 29 मार्च से तीन दिनी विधानसभा सत्र आहूत करने का ऐलान भी कर दिया है। मगर, आज दो दिन पहले तक भी कांग्रेस के पास नेता प्रतिपक्ष नहीं है। यानि की हार से सबक लेने को कांग्रेस अब भी तैयार नहीं दिख रही है।