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निरंकारी मिशन की उपप्रधान राज वासदेव हुई ब्रह्मलीन

दिल्ली: एक पवित्र संत जिन्होंने छह पातशाहियों के मार्गदर्शन में अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। सभी की प्रिय, मिशन की अनेक ऐतिहासिक व प्रेरणादायक पुस्तकों की लेखिका जिनका जीवन निरंकारी मिशन के इतिहास में एक उज्ज्वल अध्याय बना हुआ है। 12 सितम्बर की देर रात्रि को निरंकार प्रभु द्वारा प्रदत्त स्वांसों को पूर्ण कर गुरु चरणों में तोड़ निभाते हुए निरंकारमय हो गईं। उनका जीवन, न केवल निरंकारी मिशन के इतिहास में एक उज्ज्वल अध्याय रहा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बना रहेगा।

राज वासदेव सिंह का जन्म पेशावर, पाकिस्तान में 5 मई, 1941 में हुआ। गुरु परिवार से जुड़ाव के कारण बचपन से ही वह एक समर्पित गुरूसिख थी। उनका मूल नाम राजिन्दर कौर था, वासदेव सिंह से विवाह के उपरांत लेखन और सेवाओं के क्षेत्र में वह ‘राज वासदेव’ के नाम से जानी गईं और यही नाम उनकी पहचान बन गया। उन्होंने शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी से ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया। उनका पूरा परिवार ही निरंकारी मिशन के नाम रंग में पूर्णतः रंगा हुआ था। यही कारण था की उनकी सोच, भावनाओं व कर्म में वहीं समर्पित भाव, निर्भयता व इश्क हकीकी के जूनून की झलक स्पष्ट दिखाई देती थी।

शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने निरंतर उत्कृष्टता का परिचय दिया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अम्बाला कैंट के खालसा हाईस्कूल में हुई। होम नर्सिंग प्रतियोगिता में उन्होंने सफलता प्राप्त की और फिर मैट्रिक के उपरांत अम्बाला कैंट के पंजाब नेशनल स्कूल में शिक्षिका बनीं। शिक्षा को जारी रखते हुए उन्होंने अंग्रेज़ी विषय में एम.ए. किया और फिर होशियारपुर के देव कॉलेज में अंग्रेज़ी की प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। जीवन में अनेक बार विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए भी वे कभी नहीं रुकीं यही कारण था कि उनके व्यक्तित्व में अदम्य साहस और तपस्या की झलक हमेशा बनी रही।

राज वासदेव ने मिशन के प्रचार-प्रसार को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। वे चाहती थीं कि मिशन का हर बच्चा एक प्रचारक बने, और इसी उद्देश्य से उन्होंने देश-विदेश के अनेक स्थानों पर जाकर सत्संग, प्रचार और आध्यात्मिक जागरूकता का कार्य किया। 1990 से उन्होंने मिशन की पत्रिकाओं और प्रकाशनों में नियमित रूप से योगदान देना शुरू किया। उनके लेखन की शैली सरल, गहन और हृदयस्पर्शी थी, जो पाठकों को मिशन की शिक्षाओं से जोड़ देती थी।

सतगुरु बाबा हरदेव सिंह ने 2002 की जनरल बॉडी मीटिंग में उन्हें संत निरंकारी मंडल की कार्यकारिणी समिति में एडिशनल मेम्बर इंचार्ज नियुक्त किया, और वे इस समिति की पहली महिला सदस्य बनीं। यह न केवल एक ऐतिहासिक निर्णय था, बल्कि मिशन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को एक नया आयाम देने वाला कदम भी। 2005 से 2009 तक उन्हें प्रकाशन विभाग और मिशन के पब्लिक स्कूलों की सेवाएं सौंपी गईं, जिसे उन्होंने बड़ी ही निष्ठा और कुशलता से निभाया।

वर्ष 2013 में उन्हें प्रचार विभाग की जिम्मेदारी दी गई और उसी वर्ष उनके नेतृत्व में मिशन का प्रथम महिला संत समागम, पूजनीय निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। यह आयोजन मिशन की महिलाओं के लिए एक नई प्रेरणा बना। 2015 में उनके मार्गदर्शन में पहला अंग्रेज़ी माध्यम समागम आयोजित किया गया, जिसका विषय था “ल्वनजी ळनपकमक इल ज्तनजी“ और इस कार्यक्रम में सतगुरु बाबा हरदेव सिंह की पावन उपस्थिति रही। युवाओं को मिशन की शिक्षाओं से जोड़ने के लिए उन्होंने कई कार्यशालाएं, वर्कशॉप और प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए, जो आज भी उनके योगदान की अमिट छाप छोड़ते हैं।

सेवाओं का यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। वर्ष 2018 में उन्हें ब्रांच प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी दी गई, जिसमें हरियाणा, राजस्थान और गुजरात जैसे बड़े राज्यों का समावेश था। 2019 में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की शाखा प्रशासन सेवा भी उन्हें सौंपी गई। अंततः, 2022 में सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज द्वारा सन्त निरंकारी मंडल की उप प्रधान नियुक्त हुईं और जीवन की अंतिम सांस तक उन्होंने इस दायित्व को पूर्ण निष्ठा से निभाया।

राज वासदेव सदैव सतगुरु के आदेशों के प्रति समर्पित रहीं। उनके कार्यों में कोई प्रदर्शन नहीं, बल्कि निष्काम भाव की गहराई थी। वे हर सेवा को अपना सौभाग्य मानकर निभाती थीं। उनका जीवन न केवल एक साधिका का जीवन था, बल्कि मिशन की आत्मा से जुड़े एक ऐसे तपस्विनी व्यक्तित्व की कहानी है, जो युगों तक स्मरणीय रहेगा।

सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज के आशीर्वाद से, निरंकारी राजपिता रमित की अध्यक्षता में राज वासदेव के प्रेरणादायी जीवन को समर्पित ‘प्रेरणा दिवस’ का आयोजन 14 सितम्बर को बुराड़ी रोड दिल्ली में किया गया। इस अवसर पर मिशन के संतजन उनके प्रेरणादायी जीवन से सीख लेकर, श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

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