उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में वापसी के लिए न सिर्फ मुख्यमंत्री बदले, बल्कि एंटी इनकंबेंसी को पाटने के लिए घोषणाओं की झड़ी लगाई हुई है। यहां तक कि चुनावी रणभेरी के लिए शीर्षस्थ नेता चुनाव से तीन महीने पहले ही राज्य का दौरा करने के बाद अब फिर से तैयारी में हैं। बावजूद, हालिया सर्वे रिपोर्टस में संभवतः उसे ‘फीलगुड’ महसूस नहीं हो पा रहा है।
भाजपा के लिए 2017 का साल जितना उत्साहजनक रहा, 2021 उससे कहीं अधिक सांसत वाला साबित हो रहा है। साल के शुरू से ही पार्टी अंदरूनी हालातों से जूझते हुए 2022 में पार पाने की जद्दोजहद में जुटी है। अनुषंगी संगठनों की मौखिक रिपोर्टस और भीतर भीतर उठ रही आवाजों ने बीजेपी को उहापोह की स्थिति में खड़ा कर दिया है। रही सही कसर कांग्रेस की तरफ से पूर्व सीएम हरीश रावत की अति सक्रियता पूरी कर रही है। हालात यह हो चले कि ‘समूची भाजपा’ हरीश रावत के इर्दगिर्द सिमटती चली जा रही है।
प्रदेश में पौने पांच साल का वक्फा पूरा कर चुकी भाजपा सरकार के सामने विपक्ष के तौर पर सिर्फ कांग्रेस ही नहीं है, बल्कि पिछले साढ़े साल के कार्यकाल के कुछ फैसले भी हैं। हालांकि बताया जा रहा है कि ऐसे सभी मसले सीएम पुष्कर सिंह धामी की प्राथमिकता में शामिल हैं। लेकिन सभी मसलों पर वह संबंधित वर्गों की ‘डिमांड’ के अनुसार फैसला दे पाएंगे, आसन नहीं लगता।
बड़ी बात कि ऐसे ही मुद्दों को कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति के प्रमुख हरीश रावत अपना हथियार बना रहे हैं। वह अपने पक्ष को संबंधितों के सामने ही नहीं रख रहे, बल्कि उनके बीच पहुंचकर विश्वास पैदा करने की कोशिश भी कर रहे हैं। जिसका नतीजा हाल की सर्वे रिपोर्टस बता रही हैं। जिनमें जनता को युवा धामी से अधिक बुजुर्ग हरीश रावत पसंद आए हैं। महीनों बात भी उनका ग्राफ घटने की बजाए बढ़ रहा है। शायद यही बात बीजेपी को सबसे अधिक साल रही है।
ऐसे में आलम ये कि अब भाजपा को हरीश रावत के लिए खास ‘चक्रव्यूह’ रचना पड़ रहा है। जिसके लिए बीजेपी के टॉप से बॉटम तक की लीडरशिप ने अपने ‘तरकशों’ में वह सभी ‘तूरीणों’ को रखना शुरू कर दिया है, जो हरीश रावत सरकार की विदाई का सबब बने थे। एक मंत्री कहते हैं कि ‘जनता को याद दिलाना जरूरी है’, तो एक शीर्षस्थ केंद्रीय मंत्री ने हाल में अपनी पूरी जनसभा ‘हरदा’ के नाम से शुरू कर उसी पर खत्म भी की।
जिसके बाद से उत्तराखंड की सियासत में ‘हरदा’ को ‘अभिमन्यु’ की संज्ञा दी जाने लगी, तो मीडिया में भाजपा को ‘चक्रव्यूह’ रचते हुए बताया जा रहा है। इसका एक मतलब यह भी है कि जिस तरह से महाभारत में अभिमन्यु ‘चक्रव्यूह’ को नहीं भेद सका था, हरीश रावत को भी उसी में कैद कर लिया जाए। लिहाजा, क्या ‘हरदा’ भाजपा के चक्रव्यूह के आठों द्वारों को तोड़ सकेंगे, या सातवें द्वार से पहले ही खुद ‘निशस्त्र’ होकर रह जाएंगे?