
देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड के बजट को केंद्र सरकार की योजनाओं की शोकेसिंग बताया। कहा कि यह बजट आर्थिक सर्वेक्षण के दावों को भी सपोर्ट करता नहीं दिखता है। इससे राज्य की अपेक्षाएं परवान नहीं चढ़ सकती हैं।
बकौल हरीश रावत, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत बजट केवल केंद्र सरकार की योजनाओं की शोकेसिंग है, जिसको विंडो सॉकेट कहा जाता है, आप उनको दोहरा रहे हैं। राज्य के बजट में और यह तथ्य सबको मालूम है कि केंद्र पोषित योजनाओं को खर्च करने में जो राज्य का रिकॉर्ड है, वह निराशाजनक है। 30 प्रतिशत भी उसका खर्च नहीं होता है, तो इसका अर्थ है कि बजट का एक बड़ा हिस्सा जो केंद्र सरकार की वित्त पोषित योजनाओं पर आधारित है उसमें कोई खर्च की उम्मीद न की जाए।
शेष हिस्से में यदि हम सदन में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा को देखते हैं और उसमें जो आंकड़े दिए गए हैं, यदि वह आंकड़े वस्तुतः सही हैं, केवल सरकार के पृष्ठ पोषण के लिए नहीं दिए गए हैं तो फिर जो राज्य का वार्षिक बजट है, वह ₹90,000 करोड़ के करीब होना चाहिए था, जबकि बजट 72,000 करोड रुपए के आस-पास है तो इसका अर्थ है कि सरकार अपनी वित्तीय स्थिति को समझते हुये एक महत्वाकांक्षी बजट देने के बजाय उन्होंने एक ऐसा बजट प्रस्तुत किया है जिससे राज्य की अपेक्षाएं परवान नहीं चढ़ सकती हैं।
कुछ ऐसे विभागों और विभागीय बजटों की चर्चा की गई है, जो पिछले साल की कॉपी है और लगभग ऐसी 15 योजनाएं हैं, जिनमें पिछले साल भी बजट का प्राविधान किया गया और खर्च नहीं हुआ, इस बार कैसे खर्च होगा यह माननीय वित्त मंत्री बताने में असफल हुए हैं! स्वरोजगार जैसे क्षेत्र के अंदर जो बजटीय प्राविधान हैं, वह बहुत कम हैं।
कृषि और बागवानी क्षेत्र से अपेक्षा बहुत बड़ी की गई। मगर उन अपेक्षाओं की तुलना में यदि मैं दो-तीन खाली जो सरकार द्वारा घोषित मिशन हैं उनके बजटीय प्राविधानों की बात करूं मिलेट, होना तो मंडुवा मिशन चाहिए था, सरकार को अंग्रेजी शब्द का उच्चारण करना था उन्होंने मिलेट मिशन कहा। लेकिन मिलेट मिशन के लिए आपने धन कितना आवंटित किया है? आपने एप्पल मिशन के लिए कितना धन आवंटित किया है? आपने स्थानीय फलों के संवर्धन के लिए कितना बजट आवंटित किया है? यदि आप इस कुल धनराशि को देखिए जो बागवानी और कृषि क्षेत्र के विकास के लिए है तो वह पिछले वर्षों के अनुमान के ही समकक्ष है। इसका अर्थ है कि लोगों को रोजगार देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारने की दिशा में जो कदम सरकार को उठाने चाहिए थे, जिस बड़े कदम की सरकार से अपेक्षा की जा रही थी, वह कदम उठाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है।
गन्ना किसान बड़ी उम्मीद में था उसको निराश किया है, ₹1 की भी खरीद मूल्य में वृद्धि नहीं हुई है! हम उम्मीद कर रहे थे कि उसकी भरपाई करने के लिए माननीय वित्त मंत्री जी गन्ना किसानों के लिए प्रति क्विंटल कम से कम ₹10 बोनस की योजना घोषित करेंगे, लेकिन ऐसा भी कुछ बजट में दिखाई नहीं दिया है। किसानों के लिये यह बजट पूरी तरीके से निराशाजनक है। आपने संसाधन वृद्धि की दिशा में कोई महत्वाकांक्षी कार्ययोजना प्रस्तुत नहीं की है। यदि आप पिछले साल के और आने वाले समय के मूल्यों की तुलना करें, मतलब रुपये की वैल्यू की तुलना करें तो जो वित्त मंत्री जी ने कहा है कि हम 18 प्रतिशत के करीब राजस्व वृद्धि करेंगे, वह वस्तुतः केवल पिछले वित्तीय वर्ष और इस वर्ष के वित्तीय वर्ष के अंदर जो मूल्यों का अंतर होगा, वही समायोजित होगा। वस्तुतः संसाधनों में कोई ऐसी ही नहीं होने जा रही है जिससे राज्य के पास अतिरिक्त धन उपलब्ध हो सके और उस दिन से कुछ राज्य के कल्याण की योजनाएं बन सकें!
वाइब्रेंट विलेज डेवलपमेंट योजना जो सीमांत क्षेत्रों के लिए बहु प्रचारित है और सीमांत क्षेत्रों के विकास के लिए जो योजना बहु प्रचारित है, यह ऐसा नहीं है कि पहले से कोई नई योजनाएं हैं! यह पिछले सरकारों के वक्त में भी हुई थी। लेकिन आप यदि वर्ष 2014-15, 16 के सापेक्ष में इस मद में बजट को देखिए तो आप बिल्कुल साफ नजर आएगा कि केवल शाब्दिक सपोर्ट इन सीमांत क्षेत्रों को दिया गया, वस्तुतः ऐसा कुछ है नहीं!
कुल मिलाकर के यह बजट राज्य के लोगों को निराश करने वाला है, इससे राज्य के संसाधनों में कोई वृद्धि नहीं होने जा रही है जो महामहिम ने कहा है कि हम जीडीपी को 5 वर्षों के अंदर दुगना करेंगे, इससे जीडीपी वास्तविक अर्थों में और घटेगी। आर्थिक सर्वेक्षण में जो दावे किए गए हैं, उन दावों को यह बजट कहीं से भी सपोर्ट करता प्रतीत नहीं होता है! मुझे लगता है कि मैकेंजी ग्लोबल राज्य सरकार को ज्ञान देने में फेल हुआ है!