उत्तराखंडसियासत

Politics: ‘जनरल’ रहे फेल, ‘कर्नल’ से करिश्में की उम्मीद

- 2012 में बीजेपी से खंडूरी और अब ‘आप’ से कोठियाल सीएम कैंडीडेट

• दो दशक में बाकी चुनावों में बिना चेहरे के उतरी भाजपा और कांग्रेस

शिखर हिमालय डेस्क
उत्तराखण्ड की सियासत में दूसरा मौका है जब मुख्यमंत्री के घोषित चेहरे के साथ आम आदमी पार्टी चुनाव के रण में उतरेगी। इससे पहले 2012 में भारतीय जनता पार्टी ने ‘खंडूरी है जरूरी’ के नारे के साथ जनरल भुवनचंद्र खंडूरी को सीएम कैंडीडेट तय किया था। हालांकि तब खंडूरी खुद अपना ही चुनाव हार गए थे। सो, कर्नल अजय कोठियाल का नाम पार्टी को कितनी कामयाबी दिला पाएगा, यह दिलचस्प रहेगा।

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड के अपने दूसरे राजनीतिक दौरे के दिन पिछले महीने 17 अगस्त को देहरादून में कर्नल कोठियाल को विधिवत पार्टी का सीएम कैंडीडेट घोषित किया। साथ ही प्रदेश की जनता से देशभक्त पूर्व सैन्य अधिकारी को सपोर्ट करने की अपील की। कर्नल अजय ने भी अपने भावुक संबोधन में उत्तराखंड के नवनिर्माण का संकल्प दोहराया।

उत्तराखंड राज्य गठन के बाद सन् 2002 के पहले चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के लिए किसी का नाम आगे नहीं किया था। भाजपा तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी तो कांग्रेस हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरी। तीसरा विकल्प उत्तराखंड क्रांति दल भी अन्य दलों से आधा-अधूरा गठबंधन कर सामने आई थी, लेकिन उसके पास भी सीएम का चेहरा नहीं था। बहुमत मिलने पर कांग्रेस ने पैराशूट से उतारकर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता नारायण दत्त तिवारी को सीएम की बागडोर सौंपी। जो कि हिचकोलों के साथ पूरे पांच साल चलने में कामयाब रही।

सन् 2007 के आम चुनाव में भी दोनों ही दल बगैर चेहरे के ही आमने-आमने आए। त्रिशंकु परिणाम के हालात में भाजपा ने तीन सीटों वाली यूकेडी से गठबंधन कर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया। जनरल बीसी खंडूरी को कमान सौंपी गई। हालांकि पांच साला कार्यकाल में खंडूरी के बाद रमेश पोखरियाल निशंक और फिर ऐन चुनाव के वक्त खंडूरी को दोबारा गद्दी पर बिठाया गया।

2012 में भाजपा ने जनरल को बाकायदा मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दांव खेला, मगर दांव उलटा ही पड़ा। ‘खंडूरी है जरूरी’ का नारा भाजपा की सत्ता में वापसी नहीं कर सका। खुद खंडूरी भी अपनी सीट नहीं बचा सके। निर्दलीय साथ आने से गद्दी कांग्रेस को मिली तो उसने भी विधायकों में सीएम चुनने के बजाए सांसद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया। 2013 की आपदा में फजीहत के चलते कांग्रेस को भी सीएम बदलना पड़ा और लंबे इंतजार के बाद आखिरकार हरीश रावत मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजे।

इसी के चलते 2017 के आम चुनाव में दोनों ही पार्टियां सीएम का चेहरा घोषित करने की हिम्मत ही नहीं जुटा सकी। मोदी लहर के बदौलत प्रचंड बहुमत से सत्ता भाजपा के हाथ लगी। पार्टी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को कमान दी। साढ़े चार साल बाद इसी वर्ष मार्च महीने में उन्हें भी विदा कर दिया गया। फिर पौड़ी गढ़वाल के सांसद तीरथ सिंह रावत को महज चार महीने के लिए गद्दी नसीब हुई। अब खटीमा के युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी उत्तरखंड के मुख्यमंत्री हैं।

भारतीय जनता पार्टी 2022 के चुनाव में धामी के चेहरे के साथ ही चुनाव में जाएगी, कहा नहीं जा सकता। हां, पार्टी ने ‘युवा मुख्यमंत्री, 60 प्लस’ का नारा जरूर दिया है। कांग्रेस ने पूर्व सीएम हरीश रावत को चुनाव संचालन की जिम्मेदारी तो दी है, परंतु सीएम का विधिवत चेहरा घोषित नहीं किया है। ऐसे में आम आदमी पार्टी को अपने सीएम कैंडीडेट कर्नल अजय कोठियाल के नाम से करिश्में की उम्मीद जरूर होगी। मगर होगा क्या यह 2022 का रिजल्ट ही बताएगा।

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