देहरादून। वर्ष 2024 की चारधाम यात्रा का रविवार को भू बैकुंठ धाम बदरीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो जाने के बाद पटाक्षेप हो गया। इस बार चारधाम यात्रा पर रिकॉर्ड 48 लाख श्रद्धालु आए। अगले वर्ष इसमें और इजाफा होने की उम्मीद है तथा उसी के अनुरूप व्यवस्थागत चुनौतियां भी बढ़ेंगी, यह तय है।
इस बार केदारनाथ यात्रा 178 दिन, बदरीनाथ यात्रा 190 दिन, गंगोत्री 177 और यमुनोत्री 178 दिन तक चली। यात्रा की शुरुआत में व्यवस्था की चुनौतियों के साथ मौसम भी खलनायक रहा, इसके बावजूद पिछले सारे रिकॉर्ड टूट गए तो यह देवभूमि के प्रति सनातन की आस्था का प्रमाण है।
वर्ष 2023 में यात्रकाल की अवधि ज्यादा थी, तब अप्रैल अंतिम सप्ताह में धामों के कपाट खुले थे। केदारनाथ यात्रा की अवधि 205, बदरीनाथ की 206, गंगोत्री की 207 और यमुनोत्री की यात्रा अवधि 208 दिन की थी और तब श्रद्धालुओं का आंकड़ा 40 लाख को नहीं छू पाया था। आप मान सकते हैं कि यह या तो मैदानी क्षेत्रों में मौसम ने लोगों का रुख चारधाम की ओर किया लेकिन इस तरह की स्थितियां पहले भी सामने आती रही हैं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह सनातन का पुनरुत्थान ही है कि देश विदेश के तमाम श्रद्धालु कष्टप्रद यात्रा के लिए उद्यत दिखे।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि तमाम कोशिशों के बावजूद सरकारी तंत्र लोगों को वह सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवा पाया। भारी भीड़ ने कई मौकों पर प्रशासन के हाथ पांव फूल गए थे। जुलाई अंत में जब कांग्रेस केदारनाथ प्रतिष्ठा रक्षा यात्रा में गोल पोस्ट के एकदम करीब पहुंच चुकी थी, तभी अचानक प्रतिकूल मौसम के कारण आई आपदा ने ब्रेक लगा दिए थे। सोनप्रयाग, गौरीकुंड, रामबाड़ा में 2013 के बाद एक बार फिर आपदा ने झकझोर दिया। इस कारण कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। संपत्ति का नुकसान अलग से हुआ और यात्रा को स्थगित करना पड़ा।
यात्रा काल में इस बार श्रद्धालुओं की मौत का आंकड़ा भी बढ़ा। इस यात्राकाल में बदरीनाथ में 68, केदारनाथ में 127, गंगोत्री में 16, यमुनोत्री में 40 और हेमकुंड साहिब में 10 श्रद्धालुओं की मौत भी हुई। इसने हमारी स्वास्थ्य सेवाओं को कठघरे में खड़ा किया है। जाहिर है इन कटु अनुभवों ने भविष्य के लिए आगाह कर दिया है, लिहाजा सिस्टम को दुरुस्त करने की जरूरत है।
केदारनाथ यात्रा में व्यवधान के कारण स्थानीय लोगों की आजीविका प्रभावित होने से राज्य की धामी सरकार ने भरपाई करने का भरसक प्रयास किया। यहां तक कि दो तीन दिन के लिए व्यवसायियों को निःशुल्क हेली सेवा भी उपलब्ध करवाई। किंतु बड़ा सवाल यह है कि अगले साल के लिए सिस्टम ने क्या सबक लिया और उसका भविष्य की निरापद यात्रा के लिए संकल्प क्या है। जिस तरह से सनातन का पुनर्जागरण हो रहा है, वह ज्यादा सावधानी, सतर्कता और नवाचार की जरूरत को रेखांकित करता है। देखना यह होगा कि आगे सिस्टम कितनी गंभीरता दिखाता है।
लेखक दिनेश शास्त्री उत्तराखंड के जाने माने पत्रकार हैं।