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सत्य घटना: भगवान जाख के दो पश्वा पहली बार अग्निकुंड में कूदे एकसाथ

गुप्तकाशी ( विपिन सेमवाल)। भगवान जाख देवता के स्थापनाकाल से लेकर आज तक के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, कि जब एक ही अग्निकुंड में दो नर पश्वा पर भगवान यक्ष अवतरित हुए।

प्रत्येक वर्ष के बैशाख के दो प्रविष्ट को आयोजित जाखधार के निकट जाख़ मंदिर में विशाल अग्निकुंड के दहकते अंगारों पर नृत्य करने की परंपरा में आज उस वक्त भारी उलटफेर हुआ, जब पूर्व में पूजित यक्ष के पश्वा के अतिरिक्त एक अन्य व्यक्ति पर भी यक्ष अवतरित हुए। उन्होंने विशाल अग्निकुंड में लाल-लाल अंगारों पर नृत्य करके लोगों की बलाएं ली। इस अप्रत्याशित दृश्य को देखकर भक्तों की आंखें खुली की खुली रह गई।

संवत 1111 से जनपद रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी के निकट जाखधर में भगवान जाख देवता का मंदिर अवस्थित है, जहां पर प्रतिवर्ष विशाल अग्निकुंड के धधकते अंगारों पर पश्वा नृत्य करके लोगों के सुखमय भविष्य की कामना के साथ-साथ क्षेत्र में सूखाग्रस्त इलाकों में बरसात भी कराते हैं। प्रतिवर्ष वैशाख माह के दो प्रविष्ट को इस स्थान पर भव्य जाख मेला आयोजित होता है। प्रातःकाल से देर शाम तक हजारों की तादाद में भक्त इस विस्मयकारी दृश्य देखने को अग्निकुंड से कुछ दूरी पर खड़े रहते हैं।

गत कई वर्षों से नारायण कोटी गांव के सच्चिदानंद पुजारी पर भगवान यक्ष अवतरित होते हैं। जो गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी अग्निकुंड में एकबार नृत्य करके मंदिर में तनिक विश्राम लेते हैं, इसी दौरान नाला गांव के गोविंद शुक्ला पर यक्ष राज अवतरित होते हैं, और वह भीड़ को चीरते हुए अग्निकुंड में पूरी शक्ति से कूद कर नृत्य करते हैं।

हालांकि स्थानीय लोगों द्वारा परंपरा से हटकर किए गए इस कर्म का थोड़ा बहुत विरोध भी किया, लेकिन भगवान की इच्छा के सामने व्यक्ति बौना हो जाता है। इसके काफी देर तक स्थानीय पुजारी, आचार्य और कई गांव के ग्रामीणों के बीच इस मुद्दे को लेकर खासा विमर्श भी हुआ।

बताते चलें, कि गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी नारायण कोटी और कोठेड़ा के ग्रामीणों द्वारा 11 अप्रैल से गोठी का आयोजन किया गया। 13 अप्रैल की रात्रि को लड़कियों का हवन कुंड बनाकर उसे पर मंत्र शक्ति द्वारा अग्नि प्रज्वलित करते हैं, और रात भर जागरण करके भक्त यक्ष के भजन गाते हैं। ये लकड़ियां सुबह तक पूर्ण रूप से जल जाती हैं। काफी लंबे चौड़े अग्नि कुंड में दहकते अंगारॉ के अवशेष रहते हैं।

ऐसे में नारायण कोटी गांव के सच्चिदानंद पुजारी भगवान यक्ष के जयकारों और पौराणिक निशानों के साथ मंदिर में पहुंचने के बाद तनिक विश्राम लेते हैं, ढोल नाद के स्वरों के बीच यक्ष के जयकारों के बीच वह एक बार अग्निकुंड में प्रवेश करते हैं, और मंदिर में तनिक विश्राम लेते हैं। इसी दौरान अप्रत्याशित रूप से नाला गांव के एक व्यक्ति पर भगवान यक्ष अवतरित होते हैं और वह विशाल अग्निकुंड में काफी वक्त तक नृत्य करते हैं। हालांकि यह जाख मेले को लेकर इतिहास में पहला घटनाक्रम है, जब एक ही अग्निकुंड में एक ही बार दो-दो यक्ष अवतरित हुए हैं। दोनों पश्वाओं ने सभी भक्तों को आशीर्वाद दिया।

मेले में स्थानीय लोगों द्वारा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से जमकर खरीदारी भी की गई। साथ-साथ अग्नि कुंड की भभूत को निकाल कर प्रसाद स्वरूप घर ले गए। अग्निकुंड में नृत्य के बाद कुछ देर तक क्षेत्र में बूंदाबांदी जरूर हुई है। भगवान यक्ष को बरसात का देवता भी कहा जाता है। पूर्व परंपराओं का संचालन करते हुए इस बार भी अग्निकुंड में नृत्य के बाद कुछ देर के लिए हमेशा की भांति बरसात भी हुई। दो-दो पश्वाओं ने अग्निकुंड में नृत्य के बाद क्षेत्र में कई तरह के सुगबुगाहट शुरू हुई हैं। बहरहाल अभी स्थानीय लोगों और ग्रामीणों में इस मुद्दे को लेकर विमर्श हो रहा है।

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