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Rishikesh: ‘कांग्रेस’ की ‘जीत-हार’, दांव पर ‘सजवाण’ की ‘शूर-वीरता’

Rishikesh: Congress victory or lose sajwan reputation at stake

Rishikesh Assembly Chunav 2022: विधानसभा चुनाव 2022 में ऋषिकेश सीट पर 10 मार्च का सूरज किसके हिस्से आएगा और किसके नहीं, यह फिलहाल कयासबाजी का मामला भर है। लेकिन यदि कांग्रेस जीती या हारी तो यह जीत-हार किसकी होगी? जयेंद्र रमोला या फिर शूरवीर सिंह सजवाण की? सो, आपका भी सवाल होगा कि ऐसा क्यों ? तो चलिए थोड़ा पड़तालीकरण किया जाए।

ऋषिकेश विधानसभा सीट पर इसबार कांग्रेस में नौ लोगों ने दावेदारी की थी। इनमें दो दावेदार शूरवीर सिंह सजवाण और राजपाल खरोला बारी-बारी दो-दो चुनाव लड़ चुके थे। शूरवीर ने जहां एक चुनाव जीता और एक हारा, तो राजपाल को दोनों ही बार शिकस्त मिली। बावजूद इसके दोनों का ही नाम आखिरी पैनल लिस्ट में शीर्ष पर रहा। मगर कांग्रेस ने पुराने खिलाड़ियों पर दांव लगाने की बजाए एक युवा चेहरे ‘जयेंद्र रमोला’ को चुनावी समर में उतारा है।

नतीजा, पार्टी में बगावत का भूचाल आ गया। शूरवीर और राजपाल एक खेमे आ गए और रणनीति के तहत शूरवीर ने निर्दलीय नामांकन भी दाखिल कर डाला। अब ‘सांसत’ में जयेंद्र रमोला नहीं बल्कि पार्टी आ गई। उसके सामने इस सीट पर 15 साल का सूखा खत्म करने के साथ ही सत्ता तक पहुंचने के लिए एक-एक सीट को सुरक्षित करने की चुनौती जो है। तो पार्टी ने दोनों ही दावेदारों को न सिर्फ शांत किया, र्बिल्क एक शूरवीर सिंह सजवाण को तत्काल दो बड़े ओहदे और भविष्य का एक ‘खास’ आश्वासन भी दे डाला। जिसके चलते शूरवीर नामांकन वापस लेकर जयेंद्र के पक्ष में खड़े हो गए।

यहां काबिले गौर एक और बात कि आखिर शूरवीर सिंह सजवाण ने इसबार ऋषिकेश में ही डेरा क्यों जमाया? तो बता दें, कि 2007 की शिकस्त के बाद के तमाम चुनावों में सजवाण की जीत पर मानो ग्रहण लग गया था। इस हार से उनका समूचा राजनीतिक करियर दांव पर लग गया। लिहाजा, वह इसबार 2007 की हार का ‘बदला’ लेने यहां आए। घर भी बनाया और पिछले चार साल में चप्पे-चप्पे तक भी पहुंचे। जिससे लगभग आश्वस्त हो चले, कि टिकट मिला तो जीत तय है। वहीं, जनता में भी वह एक विकल्प के तौर पर उभरे। लेकिन टिकट रमोला को मिलना उनकी चाहत को कुछ ठहरा गया।

अब जब पार्टी के लिए उन्होंने एक कदम पीछे आना मंजूर किया, तो पार्टी ने भी उन्हें संगठन में प्रदेश ‘कार्यकारी अध्यक्ष’ और चुनाव अभियान समिति का ‘को-चेयरमैन’ का दायित्व सौंप दिया। यानि कि पार्टी ने इस सीट पर जीत-हार का बोझ भी सीधे तौर से उन्हीं के कंधे पर लाद दिया, और ऐसे में कांग्रेस की जीत-हार भी सीधे-सीधे उनकी ‘प्रतिष्ठा’ से जुड़ गई।

अब पूर्व काबीना मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण के लिए अपनी ‘प्रतिष्ठा’ और 2007 का ‘बदला’, दोनों ही चुनौतियां मुहंबाए खड़ी हैं! मतलब उनका सियासी करियर फिर से दोनों ही स्थितियों में दांव पर लग चुका है। लिहाजा, यहां अगर यह कहें कि ऋषिकेश सीट पर कांग्रेस की जीत-हार जयेंद्र रमोला की बजाए शूरवीर सिंह सजवाण की होगी, तो शायद असंगत भी नहीं!!

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