
शिखर हिमालय डेस्क
‘दलित मुख्यमंत्री’ वाले पूर्व सीएम हरीश रावत (Harish Rawat) के बयान ने कांग्रेस (Congress) के भीतर भूचाल ला दिया है। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह (Pritam Singh) और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय (Kishor Upadhyay) ने इशारों में उनके मंतव्य को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। ऐसे में सवाल कि आखिर कांग्रेस लीडर को ‘दलित मुख्यमंत्री’ वाले बयान से क्या एतराज हो सकता है? मीडिया और सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर यही चर्चाएं तेज हैं।
पंजाब से लौटते ही हरदा ने परिवर्तन यात्रा के दौरान लक्सर में अपनी मंशा जाहिर करने के लिए पंजाव के नवनियुक्त दलित वर्ग से बने सीएम को आधार बनाया। बात मीडिया में सुर्खी बनी, तो लगे हाथ कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह और किशोर उपाध्याय प्रतिक्रिया दिए बिना नहीं रहे। प्रीतम बोले ‘बहुत देर कर दी हजुर आते आते’। तो किशोर उपाध्याय ने 2017 में कांग्रेस की हार की समीक्षा की बात उछाल दी।
सियासी जानकार मानते हैं कि हरदा के पिछले और मौजुदा बयानों को समझना जरूरी होगा। जिससे लगभग साफ है कि गर 2022 Election में कांग्रेस की सरकार बनेगी तो खुद हरीश रावत नहीं चाहेंगे कि दलित मुख्यमंत्री वाला बयान उनके आड़े आए। क्योंकि 2022 के लिए वह खुद दावेदार हैं।
कुछ दिन पहले हरीश रावत ने एक इंटरव्यू में गणेश गोदियाल (Ganesh Godiyal) में ‘भविष्य’ का बड़ा नेता बनने की संभावनाएं जताई थी। अब वह जीते जी दलित मुख्यमंत्री को भी कुर्सी पर देखना चाहते हैं। शायद ऐसा चेहरा उनकी निगाह में होगा भी। ऐसे में शायद कांग्रेस के भीतर ‘खेला’ को समझ लिया गया है।
हरदा की राजनीतिक शैली को समझने वाले मानते हैं कि वे हमेशा खुद की ‘गाढ़ी लकीर’ खींचने के आदी रहे हैं। जिससे पूर्व में बाकी लकीरें मिट गई या फिर धुंधला गई। इसबार भी कथित ‘खेला’ का असर कांग्रेस के भीतर दिख रहा है।
कांग्रेसियों के मन में शायद एक ‘डर’ घर कर रहा है जिसमें ‘उनके और अवसरों’ के बीच के फासले के बीच कोई ‘दीवार’ खड़ी होने जैसा कुछ है। यही ‘डर’ हरदा के बयान के विरोध का कारण भी हो सकता है।